Preventive Diagnosis : 25 से 45 की उम्र में सभी महिलाओं को करवाने चाहिए ये जरूरी टेस्ट

प्रीवेंटिव डायग्नोसिस आपको आने वाली समस्याओं के बारे में पहले से ही बता देता है। ताकि आप बेहतर तरीके और सही उपचार के साथ आगे बढ़ सकें। खासतौर से पीसीओएस और मेनोपॉज की स्थिति में समय पर जांच होना बहुत मददगार साबित होता है।
हमारे देश में महिलाओं के स्वास्थ्य की अक्सर अनदेखी की जाती रही है। उनकी बीमारियों पर तब तक ध्यान नहीं दिया जाता, जब तक समस्या बेहद गंभीर नहीं हो जाती। हालांकि प्रीवेन्टिव डायग्नॉस्टिक (Preventive Diagnosis) के चलते हेल्थकेयर सेक्टर में बदलाव आया है। इस दृष्टिकोण की वजह से बीमारियों का समय पर निदान कर जल्द इलाज शुरू किया जा सकता है, और इलाज के बारे में सोच-समझ पर समय रहते सही फैसला लिया जा सकता है।
प्रीवेन्टिव स्वास्थ्य जांच क्या है और इसकी जरूरत क्यों होती है, पर डॉ आभा सबीखी कहती हैं, “यह 25 से 45 वर्ष की महिलाओं के लिए प्रीवेंटिव डायग्नोसिस (Preventive Diagnosis) बेहद ज़रूरी है। इससे एनिमिया, पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिज़ीज़), इनफर्टीलिटी, और मेनोपॉज़ से पहले होने वाले स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों को पहचानने में मदद मिलती है। नियमित जांच में आने वाली बाधाओं को दूर कर महिलाएं अपने स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित कर सकती हैं।”
डॉ आभा सबीखी सीनियर पैथोलॉजिस्ट हैं और वे एगिलस डायग्नोस्टिक्स में तकनीकी COE और अकादमिक विभाग में सलाहकार और मेंटर (हिस्टोपैथोलॉजी) हैं।
जानिए महिलाओं की कुछ आम स्वास्थ्य समस्याएं (Common health issues of women)
1 एनिमियाः
एनिमिया यानि खून की कमी। यह आमतौर पर महिलाओं में पाई जाने वाली गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, खासतौर पर प्रजनन वर्ग की महिलाएं इस समस्या से पीड़ित रहती हैं। माहवारी के दौरान ज़्यादा खून बहने, आहार में पोषण की कमी और अन्य बीमारियों के चलते महिलाओं में एनिमिया की संभावना अधिक होती है। अगर इसका इलाज न किया जाए तो कॉग्निटिव फंक्शन्स में समस्या और गर्भावस्था में जटिलताएं हो सकती हैं।

2 पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिज़ीज़ (पीसीओएस) :
पीसीओएस एक हॉर्मोनल विकार है। प्रजनन वर्ग की तकरीबन 10 फीसदी महिलाएं इस समस्या से पीड़ित होती हैं। इसके कई लक्षण हैं जैसे पीरियड्स अनियमित होना, एंड्रोजन का स्तर बहुत अधिक होना और ओवेरियन सिस्ट आदि।
इसकी वजह से आगे चलकर डायबिटीज़ और कार्डियोवैस्कुलर (दिल की बीमारियां) बीमारियां तक हो सकती हैं। ऐसे में जल्द जांच कर पीसीओरएस का इलाज करने से इन बीमारियों की संभावना को कम किया जा सकता है।
3 इन्फर्टीलिटी
आज के दौर में कई जोड़े इन्फर्टीलिटी की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से एक कुछ मामलों में महिलाओं की समस्याएं इसका कारण होती हैं। महिलाओं में हॉर्मोनल असंतुलन, ओवरी की समस्याओं और अन्य प्रजनन विकारों के चलते इन्फर्टिलिटी हो सकती है। ऐसे में नियमित जांच (Preventive Diagnosis) के द्वारा उनके प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर समझा जा सकता है और कोई भी परेशानी होने पर समय रहते पता लगाकर इलाज किया जा सकता है।
4 मेनोपॉज़ से पहले होने वाली स्वास्थ्य समस्याएंः
40 की उम्र के बाद महिलाओं में कई तरह के शारीरिक और मानसिक बदलाव आने लगते हैं। हॉर्मोनल बदलाव के चलते हॉट फ्लैश, मूड बदलना, पीरियड्स अनियमित होना ये सभी लक्षण दिखने लगते हैं जो मेनोपॉज़ का संकेत हैं। ऐसे में प्रीवेन्टिव डायग्नॉस्टिक (Preventive Diagnosis) की मदद से महिलाएं इन लक्षणाें पर निगरानी रख सकती हैं और जीवन के इस महत्वपूर्ण बदलाव के लिए बेहतर तैयार हो सकती हैं।
क्या प्रीवेन्टिव डायग्नोसिस (Preventive Diagnosis) मददगार है?
महिलाओं को प्रीवेन्टिव डायग्नॉस्टिक के बारे में जागरुक और सशक्त बनाना किसी का व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, यह समाज में हम सभी की ज़िम्मेदारी है। महिलाओं की आम स्वास्थ्य समस्याओं जैसे एनीमिया, पीसीओएस, इन्फर्टीलिटी, प्रीमेनोपॉज़ल हेल्थ के बारे में जागरुकता बढ़ाकर हम महिलाओं को अधिक सशक्त और आने वाली पीढ़ियों को अधिक स्वस्थ बना सकते हैं।
प्रीवेन्टिव डायग्नॉस्टिक्स स्वास्थ्य की देखभाल में कारगर होती है। इस की मदद से किसी भी बीमारी की संभावना को पहले पहचाना जा सकता है और समय पर इलाज कर इसके गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है।
जानिए किस समस्या का पता लगाने के लिए करवाना चाहिए कौन सा टेस्ट (Different tests to diagnosis different problems)
1 पीसीओएस कॉम्प्रीहेन्सिव पैनलः
वे महिलाएं जो पीसीओएस से जूझ रही हैं, उनके लिए इस पैनल में कई तरह की जांच शामिल है। जैसे एलएच, एफएसएच, प्रोलैक्टिन, फ्री एंड्रोजन इंडैक्स, टीएसएच 3जी और एएएमएच आदि। ये सभी जांच हॉर्मोनल स्तर, इंसुलिन रेज़िस्टेन्स, और ओवेरियन रिज़र्व का मूल्यांकन का प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देती हैं।

2 प्री-कन्सेप्शन/ इन्फर्टीलिटी चैक (फीमेल):
यह जांच उन महिलाओं के लिए हैं जो इन्फर्टिलिटी के चलते परिवार शुरू करने के लिए जूझ रही हैं। इस पैनल में सीबीसी, थॉयराइड पैनल, प्रोजेस्टेरॉन, रूबेला आईजीजी, एचआईवी स्क्रीनिंग शामिल हैं। यह जांच उन सभी कारकों पर निगरानी रखती है, जो गर्भधारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे हॉर्मोनल संतुलन, ओवेरियन रिज़र्व और इम्यून हेल्थ।
3 मेनोपॉज़ल डायग्नॉस्टिक पैनल:
इस पैनल में वे टेस्ट शामिल हैं जो प्रीमेनोपॉज़ल बदलावों पर निगरानी रखते हैं जैसे ऑस्ट्राडियोल, एफएसएच, एफटी4, और टीएसएच थर्ड जनरेशन। यह जांच हॉर्मोनल बदलाव, थॉयराईड फंक्शन के मूल्यांकन में कारगर है, जो लक्षणों के आधार पर निदान करती है।
4 एनिमिया स्क्रीनिंग:
एनिमिया की जांच के लिए सीबीसी और आयरन टेस्ट किए जाते हैं। जांच के परिणाम के आधार पर उपचार की योजना बनाई जाती है।
क्यों महिलाएं नहीं करवा पाती प्रीवेंटिव डायग्नोस्टिक (Challenges of preventive diagnostics)
आधुनिक डायग्नॉस्टिक्स की उपलब्धता के बीच महिलाओं की नियमित जांच में कई तरह की रूकावटें आती हैंः
जागरुकता की कमीः कई महिलाएं प्रीवेन्टिव डायग्नॉस्टिक्स के फायदों और उपलब्ध जांचों के बारे में जागरुक नहीं होतीं।
सामाजिक बाधाएं: समाज में फैली गलत अवधारणाओं के चलते महिलाएं अपने स्वास्थ्य के बारे में खुल कर बात नहीं करतीं।
आर्थिक बाधाएं: निदान और इलाज की लागत की वजह से खासतौर पर निम्न आय वर्ग की महिलाएं इन सेवाओं से वंचित रह जाती हैं।
अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं : खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्यसेवाएं सुलभ न होने की वजह से महिलाएं निदान एवं उपचार से वंचित रह जाती हैं।
इन चुनौतियों को दूर करने के लिए किए जाने चाहिए ये जरूरी उपाय (Tips to increase preventive diagnostics)
शिक्षा अभियानः
सामुदायिक गतिविधियां, मीडिया एवं स्वास्थ्यसेवा प्रदाताओं के माध्यम से महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों और डायग्नॉस्टिक सेवाओं के बारे में जागरुकता बढ़ाकर इन समस्याओं को हल किया जा सकता है।

नीतिगत हस्तक्षेपः
ज़रूरी जांच एवं निदान पर सरकारी सब्सिडी और इंश्यारेन्स कवरेज देकर इन सेवाओं को किफ़ायती और सुलभ बनाया जा सकता है।
टेलीमेडिसिन समाधानः
मेडिकल टेक्नोलॉजी के द्वारा उन समुदायों में नैदानिक सेवाओं की उपलब्धता को बेहतर बनाया जा सकता है, जहां संसाधन सीमित हैं।
स्वास्थ्य के बारे में खुली बातचीत को बढ़ावा देनाः
समाज में फैली गलत अवधारणाओं को दूर कर महिलाओं को अपने स्वास्थ्य क बारे में खुल कर बात करने के लिए प्रेरित करना चाहिए और नियमित जांच की आदत को बढ़ावा देना चाहिए।
याद रखें
नियमित जांच को बढ़ावा देने के लिए हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, नीति निर्माताओं और समुदायों को एकजुट होकर ऐसा सिस्टम बनाना होगा जहां महिलाओं के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए। डायग्नॉस्टिक, समाज के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए शक्तिशाली उपकरण साबित हो सकता है।
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