Premenstrual fatigue: प्रीमेंस्ट्रुअल फटिग बन रही है चिंता का कारण, इन 7 उपायों से करें समस्या हल

शरीर में कई कारणों से व्यक्ति थकान, चिंता और डिप्रेशन का सामना करने लगता है। इससे न केवल एकाग्रता में कमी महसूस होने लगती है बल्कि लो एनर्जी भी परेशानी का कारण बन जाती है। अगर आप भी ऐसी स्थिति में है, तो ये प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षण हो सकते हैं। दरअसल, पीरियड से पहले शरीर में हार्मोनल बदलाव आने लगते है, जिसे पीएमएस भी कहा जाता है। ऐसे में महिलाओं के व्यवहार में अक्सर चिड़चिड़ापन, बेवजह रोना और आलस्य का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कुछ आसानी टिप्स की मदद से प्रीमेंस्ट्रुअल फटिग को हल किया जा सकता है (Premenstrual fatigue)।
प्रीमेंस्ट्रुअल फटिग किसे कहा जाता है (What is Premenstrual fatigue)
प्रीमेंस्ट्रुअल फटिग (Premenstrual fatigue) उस स्थिति को कहा जाता है, जिसमें पीरियड से लगभग 7 से 10 दिन पहले महिलाओं को थकान, सूजन, पाचन संबंधी समस्याओं और सिरदर्द जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ता है। इसका असर इमोशनल हेल्थ पर भी दिखने लगता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिर्पोट के अनुसार पीरियड के दौरान 47.8 फीसदी महिलाओं को पीएमएस (Premenstrual fatigue) का अनुभव होता है। इनमें से 20 फीसदी में गंभीर लक्षण पाए जाते हैं। इस बारे में
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ, गंधाली देवरुखकर पिल्लई के अनुसार मासिक धर्म चक्र के दौरान होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के चलते आलस्य का सामना करना पड़ता हैं। दरअसल, ओव्यूलेशन के बाद शरीर में प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ने लगता है। और इसका शरीर पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। इसके अलावा शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन के स्तर में भी उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। इसका असर व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है। इससे मूड स्विंग का सामना करना पड़ता है। साथ ही ऊर्जा में कमी महसूस होने लगती है।

प्रीमेंस्ट्रुअल फटिग से डील करने के उपाय (Tips to deal Premenstrual fatigue)
1. भरपूर नींद लें
अपने कैफीन और स्क्रीन.टाइम को कम करें क्योंकि ये कारक वास्तव में आपकी नींद के पैटर्न को बाधित कर सकते हैं। अच्छी नींद के महत्व को समझने का प्रयास करें। स्क्रीन टाइम बढ़ने से अधिकतर लोग अगले दिन थकान महसूस करेंगे। ऐसे में सोने का समय तय कर लें और स्लीम हाइजीन को मेंटेन करें, ताकि अच्छी और गहरी नींद ले सकें।
2. वर्कआउट है ज़रूरी
वर्कआउट करने से ऊर्जावान महसूस करने में मदद मिलती है। दरअसल इससे रक्त प्रवाह बढ़ता है और आपको एंडोर्फिन से भर देता है। नियमित वर्कआउट का अभ्यास करें। इसके अलावा वॉकिंग, स्विमिंग, डांस और योग के महत्व को भी समझें। इसकी मदद से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य उचित बना रहता है। मगर इस दौरान अपने शरीर की भी सुनें। थकान महसूस होने पर शरीर को आराम दें और फिर अभ्यास करें।

3. खुद को हाइड्रेटिड रखें
शरीर को हेल्दी और एक्टिव रखने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए। इससे खुद को हाइड्रेटेड रखने में मदद मिलती है। पानी पीने से शरीर में एनर्जी का स्तर बना रहता है और व्यक्ति जल्दी थकान महसूस नहीं करता है। इसके इलावा पीरियड्स के दौरान कभी कभार खाने के साथ पीने वाले पेय पदार्थों से बचना चाहिए। एक्सपर्ट के अनुसार पानी के अलावा नारियल पानी पीने से फायदा मिलता है। दरअसल, वो सोडियम से भरपूर होता है, जिससे रक्तचाप को नियंत्रित रखा जा सकता है।
4. रिलैक्सेशन है ज़रूरी
मानसिक और शारीरिक रूप से शरीर को रिलैक्स रखने के लिए रूटीन में डीप ब्रीदिंग, मेडिटेशन और प्रोग्रेसिव रिलैक्सेशन थेरेपी को शामिल करें। इसके अलावा किसी करीबी से बातचीत करें या किताबें पढ़ने में समय बिताएं। इससे मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है और तनाव का स्तर कम होने लगता है, जिससे पीरियड साइकल शुरू होने से पहले शरीर में हार्मोन का स्तर नियंत्रित रहता है।
5. पीरियड्स को ट्रैक करें
इसके अलावा अपने व्यवहार के पैटर्न को समझने के लिए पीरियड्स को ट्रैक करें। इसके लिए किसी एप की भी मदद ली जा सकती है। पीरियड्स से सप्ताह पहले खानपान और सोने की आदतों पर फोकस किया जा सकता है। इसके अलावा व्यायाम को अपने रूटीन में भी शामिल किया जा सकता है।

6. नट्स और सीड्स का करें सेवन
आहार में ज़रूरी विटामिन, मिनरल और फाइबर के अलावा आमेगा 3 फैटी एसिड की मात्रा को बढ़ाएं। इससे शरीर को हेल्दी फैट्स की प्राप्ति होती है और प्रीमेंस्ट्रुअल फटिग (Premenstrual fatigue) का एहसास नहीं होता है। इसके लिए आहार में काजू, बादाम, अखरोट, अलसी क बीज, कद्दू के बीज, चिया सीड्स और पिस्ता व मूंगफली को शामिल करें। इससे शरीर का एंटीऑक्सीडेंट्स की भी प्राप्ति होती है, जिससे पीएमएस से राहत मिलती है।
7. सप्लीमेंट्स को करें शामिल
ताकत को बढ़ाने के लिए आहार में कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर को बढ़ाना आवश्यक है। इसके लिए आहार में बदलाव लाने के अलावा कुछ खास सप्लीमेंट्स को भी शामिल करें। इससे प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम का जोखिम कम हो जाता है।
