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Explainer: क्या तिब्बत से टूट कर अलग होगा भारत, वैज्ञानिक क्यों कह रहे हैं ऐसा

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नई स्टडी में भूवैज्ञानिकों ने पाया है कि भारतीय प्लेट तिब्बत के नीचे टूट कर अलग हो सकती है. ऐसा उस थ्योरी के बावजूद हो रहा है जिसमे दो प्लेटों के टकराने के बाद से हिमालय बना और रोजाना ऊंचा होता जा रहा है….और पढ़ें

क्या आप यकीन करेंगे? भारत की धरती के दो हिस्से हो सकते हैं. जी हां भूगर्भीय अध्ययन की मानें तो ऐसा सकता है और भारतीय प्रायद्वीप के बीच का हिस्सा दो टुकड़ों में वैसे ही अलग हो सकता है जैसा कि एक केक काटने पर होता है. और ऐसा तिब्बत के नीचे से हो रहा है. यह हैरान करने वाला नतीजा पिछले उन अध्ययनों से बिलकुल ही अलग है जो यह कहते हैं कि भारत धरती के जिस टुकड़े से बना है वह तो ऊपर यूरेशिया के टुकड़े टकरा रहा है और इसी टकराव के कारण हिमालय ऊंचा होता जा रहा है.

अब तक क्या समझा जा रहा था.
अब तक के अध्ययन  भारतीय उपमहाद्वीप के बारे में यही बताते हैं कि भारतीय भूभाग बीते 6 करोड़ सोलों से आकार ले रहा है. दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप एक अलग ही महाद्वीप था जिसके और यूरेशिया भूभाग के बीच में टेथिस महासगर था. दोनों प्लेटें एक दूसरे की खिसकने लगीं.

दो प्लेटों का पास आकर टकराव
हो ये रहा था कि दो टेक्टोनिकल प्लेट्स, एक भारतीय प्लेट और दूसरी यूरेशियन प्लेट इतने पास आने लगीं कि उनके बीच भूगर्भीय स्तर पर धीमी गति के टकराव अटल था. लेकिन टकराव के दो नतीजे हो सकते थे. पहला कि दोनों के टकारने से एक हिस्से दूसरे के ऊपर चढ़ जाते या दोनों हिस्से  टकराते हुए मुड़कर या तो नीचे जाते या फिर ऊपर जाते, नीचे जाने की जगह होने होने पर ऊपर ही आने की संभावना होती.

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वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी की प्लेटों के टकराव से ऐसा हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

जटिल प्रक्रियाओं वाला नतीजा
टकराव का नतीजा दूसरा ही हुआ और आज जो  हिमालय हम देखते हैं उसी टकराव का नतीजा है.  लेकिन यह पूरी प्रक्रिया सतह के नीचे काफी जटिल है. इसमें कई तरह की प्रक्रियाएं आती हैं.  और यही जटिलताएं हमें उस अध्ययन की ओर ले जाती हैं जिससे यह बहुत ही चौंकाने वाला नतीजा मिला है. लेकिन इसके लिए पहले हमें पृथ्वी की प्लेटों और उनके बर्ताव को समझना होगा.

प्लेटों के बर्ताव में बदलाव
पृथ्वी की पर्पटी ठोस नहीं है, बल्कि वह कई प्लेटों से बनी हैं, जो पिघले हुए प्लास्टिक के जैसे मैग्मा के ऊपर तैर रही हैं. जहां महासागरों के नीचे प्लेट बहुत ही घनी हैं. महाद्वीपों की प्लेट मोटी और तैरने वाली हैं. वे जब टकराती हैं तो उन प्लेटों का बर्ताव अजीब हो जाता है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि निम्नीकरण की प्रक्रिया का बर्ताव कुछ और भी हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

बर्ताव पर मतभेद
महाद्वीपीय टेक्टोनिक प्लेटों का यही बर्ताव वैज्ञानिकों में विवाद की वजह बना हुआ है. और इसी वजह से उनके बीच भारतीय प्लेट के यूरेशिया प्लेट से टकराव के बर्ताव को लेकर मतभेद हैं. जब कोई प्लेट दूसरी प्लेट से टकराती तो वे एक दूसरे के ऊपर चढ़ने की कोशिश करती हैं.  इससे एक प्लेट नीचे जा कर धंसने लगती हैं इस प्रक्रिया को सबडक्शन या निम्नी करण कहते हैं.

प्लेटों के धसने की प्रक्रिया
एक सिद्धांत कहता है कि टकराने पर प्लेटें नीचे धंसने का यानी निम्नीकरण की प्रक्रिया का प्रतिरोध करती हैं. यानी आसानी से नीचे नहीं धंस पाती हैं. और यही वजह है कि भारतीय प्लेट फिसल कर तिब्बत के नीचे जा रही है. वहीं दूसरा सिद्धांत कहता है कि भारतीय प्लेट का ऊपरी और तैरने वाला हिस्सा टकराव की सीमा पर मुड़ तुड़ कर सिकुड़ जाता है, जिससे निचला हिस्सा धंस क मेंटल में मिल रहा है.

यह भी पढ़ें: Explainer: क्या होती है मकर संक्रांति, इस दिन सूर्य में क्या आता है बदलाव, जो होता है साल में एक बार?

टूट रहा है हिस्सा
लेकिन हाल में हुए तिब्बत के नीचे की  भूकंपीय तरंगों और सतह के नीचे से ऊपर उठती गैसों के नए विश्लेषण ने एक नई संभावना पर रोशनी डाली है. यह सिद्धांत बताता है कि भारतीय प्लेट का एक हिस्सा यूरोशियाई प्लेट के नीचे फिसलते हुए अलग हो रहा है. इसमें निचला घना हिस्सा ऊपर के हिस्से से छिल कर अलग हो रहा है. प्रमाण यह भी बताते हैं कि अलग होने वाले हिस्सा सीधा टूट कर, प्लेट को दो हिस्सों में तोड़ रहा है.

यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय के भूगतिकीविद् डाउवे वान हिंसबर्गेन का कहना है की, “हमें नहीं पता था कि महाद्वीप इस तरह से बर्ताव कर सकते हैं,” अमेरिकन जियो फिजिकल यूनियन कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत की गई इस स्टडी हिमालय के निर्माण को समझने और इलाके में आ रह भूकंपों का आंकलन करने में मदद करेगी.

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