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Explainer: क्या घर से मोटी नकदी मिलने के बाद हटाया जा सकते हैं हाईकोर्ट के जज

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दिल्ली हाईकोर्ट एक जज जब होली की छुट्टियों में बाहर थे, तभी उनके सरकारी आवास में घर में आग लग गई. तब पुलिस को उनके घर से काफी मोटी नकदी मिली. इसके बाद उन्हें हटाने की मांग हो रही है.

Explainer: क्या घर से मोटी नकदी मिलने के बाद हटाया जा सकते हैं हाईकोर्ट के जज

हाइलाइट्स

  • दिल्ली हाईकोर्ट के जज के घर से भारी नकदी बरामद हुई.
  • जज का तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया.
  • जज को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव जरूरी है.

दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के बंगले पर भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया है. पिछले दिनों उनके सरकारी आवास में आग लग गई. जब आग बुझाने के दौरान पुलिस को वहां से पैसों का भंडार मिला. तब वह जज अपने आवास में नहीं थे, शहर से बाहर थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजने का फैसला किया है. जानते हैं अगर किसी जज के घर मोटी मात्रा में कैश या रिश्वत लेने जैसे मामले सामने मिलते हैं तो क्या उन्हें हटाया जा सकता है.

दरअसल होली की छुटि्टयों में दिल्ली हाईकोर्ट के ये जस्टिस बाहर थे. इसी दौरान उनके सरकारी बंगले पर आग लग गई थी. फैमिली मेंबर्स ने पुलिस और इमरजेंसी सर्विस को आग की जानकारी दी. जब पुलिस और फायरब्रिगेड की टीम आग बुझा रही थी, तब उसे घर में भारी मात्रा में कैश मिला. मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) तक पहुंचा.

उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल कॉलेजियम की मीटिंग बुलाई. जज का तबादला वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया. अब सवाल ये उठ रहा है कि इस मामले में जज को हटाया क्यों नहीं जा सकता. या ऐसे मामलों में कोई जज कैसे हटाया जा सकता है.

सवाल – अगर हाईकोर्ट जज के घर से करोड़ों की संपत्ति मिले तो हटाया जा सकता है?
– हां, अगर भारत में हाईकोर्ट के किसी जज के घर से करोड़ों की संपत्ति मिलती है. ये साबित हो जाता है कि यह संपत्ति उनकी वैध आय से बहुत अधिक है. भ्रष्टाचार या अवैध तरीकों से अर्जित की गई है, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है. इसके लिए संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है, जैसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217(1)(b) में बताया गया है.

सवाल – क्या केवल मोटी संपत्ति मिलने से तुरंत हटा सकते हैं?
– केवल संपत्ति मिलने से जज को तुरंत नहीं हटाया जा सकता. यह जांच करनी होगी कि संपत्ति अवैध है या नहीं. अगर यह उनकी घोषित आय (जो जजों को हर साल संपत्ति का ब्योरा देना होता है) से मेल नहीं खाती या इसका कोई वैध स्रोत नहीं है, तो इसे “कदाचार” (misbehaviour) माना जा सकता है.

सवाल – तब महाभियोग लाना होता है?
– कदाचार के आऱोप में भी जज को हटाने के लिए पहले संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश करना होता है.

सवाल – महाभियोग की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?
– संसद के किसी एक सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. प्रस्ताव को पेश करने के लिए एक निश्चित संख्या में सांसदों का समर्थन आवश्यक है:
लोकसभा: कम से कम 100 सांसदों का समर्थन.
राज्यसभा: कम से कम 50 सांसदों का समर्थन.
प्रस्ताव को सभापति (राज्यसभा के लिए उपराष्ट्रपति) या स्पीकर (लोकसभा के लिए) के सामने पेश किया जाता है. सभापति या स्पीकर प्रस्ताव की प्रारंभिक जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करते हैं. समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक विशिष्ट विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं. समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट देती है.

सवाल – अगर समिति की रिपोर्ट में आरोप सही पाए गए तो क्या होता है?
– तब संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है. प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. यदि एक सदन में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है. यदि दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जज को उनके पद से हटा दिया जाता है.

सवाल – आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ?
– भारत में आज तक किसी हाईकोर्ट जज को महाभियोग के जरिए हटाया नहीं गया. कई बार आरोप लगते हैं, लेकिन प्रक्रिया पूरी होने से पहले जज इस्तीफा दे देते हैं या सबूतों की कमी के कारण मामला आगे नहीं बढ़ता.

सवाल – हटाने की प्रक्रिया इतनी कठिन क्यों है?
जजों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए संविधान ने उन्हें हटाने की प्रक्रिया को जानबूझकर कठिन बनाया है. इसलिए, केवल संपत्ति मिलने से कुछ नहीं होगा; इसे भ्रष्टाचार से जोड़ने के लिए ठोस सबूत चाहिए.
जस्टिस पी. डी. दिनाकरण (2009 में) पर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे. उनके खिलाफ जांच शुरू हुई, लेकिन महाभियोग तक बात नहीं पहुंची और उन्होंने इस्तीफा दे दिया. कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ 2011 में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई, फिर उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

सवाल – जज के पास कैश मिले तो क्या होता है?
– सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामले की जांच के लिए 1999 में इन हाउस प्रॉसेस बनाई है, जिसके तरह कार्रवाई की जाती है. इसके तहत जजों के खिलाफ गलत काम, अनुचित व्यवहार और भ्रष्टाचार जैसे आरोपों की जांच कर एक्शन लिया जाता है. जिस जज के खिलाफ ऐसे मामले आते हैं, सीजेआई उससे जवाब मांगते हैं. लेकिन हटा नहीं सकते.

सवाल – तो क्या इस पर सुप्रीम कोर्ट खुद कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता?
– नहीं, क्योंकि हाईकोर्ट किसी भी सूरत में सुप्रीम कोर्ट की मातहत अदालत नहीं होती बल्कि स्वतंत्र होती है. सुप्रीम कोर्ट खुद केवल जांच कर सकता है और महाभियोग चलाने के लिए मामले को संसद भेज सकती है.

सवाल – जजों को सार्वजनिक तौर पर किस तरह पेश आना चाहिए?
– उन्हें ये समझना चाहिए कि जिस संस्था के साथ वो काम कर रहे हैं, उसकी अपनी गरिमा है. उनके कामों या बयानों से उस संस्था पर ठेस नहीं लगनी चाहिए. – निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए
– न्यायाधीशों को निष्पक्ष दिखना चाहिए
– न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा करनी चाहिए
– न्यायाधीशों को ऐसी सार्वजनिक बहसों में शामिल नहीं होना चाहिए जो न्यायिक प्रणाली में विश्वास को कमजोर कर सकती हों.

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