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नक्काशी के जरिए हिन्दू देवी देवताओं की मूर्ति बना रहे अब्दुल कलाम, बोले…

Agency:News18 Uttar Pradesh

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सहारनपुर के अब्दुल कलाम पिछले 60 साल से भगवानों की मूर्तियां बनाकर भाईचारे का पैगाम दे रहे हैं. 2018 में उन्हें भगवान कृष्ण की मूर्ति बनाने पर सम्मान मिला था.

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अब्दुल

अब्दुल कलाम द्वारा बनाई गई मूर्ति.

हाइलाइट्स

  • अब्दुल कलाम 60 साल से भगवानों की मूर्तियां बना रहे हैं.
  • 2018 में भगवान कृष्ण की मूर्ति बनाने पर सम्मान मिला.
  • लकड़ी पर नक्काशी कर भाईचारे का पैगाम दे रहे हैं.

सहारनपुर: यूपी के सहारनपुर की वुड कार्विंग कला न केवल देश में, बल्कि विदेशों तक अपनी छाप छोड़ चुकी है. यहां की लकड़ी पर की गई नक्काशी दुनियाभर में घरों की शोभा बढ़ाती है. इसी शहर के कुछ मुस्लिम कारीगर हिंदू मंदिरों में पूजे जाने वाले भगवानों की मूर्तियां तैयार कर भाईचारे का अनूठा संदेश दे रहे हैं.
सहारनपुर का लकड़ी उद्योग सदियों से प्रसिद्ध है, जहां बासवुड, सागौन, ओक, बटरनट, पाइन और लाइम जैसी लकड़ियों पर नक्काशी की जाती है. इन लकड़ियों को सुंदर मूर्तियों और सजावटी सामानों में ढाला जाता है. इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं 75 वर्षीय अब्दुल कलाम, जो पिछले 60 वर्षों से भगवान की मूर्तियां बना रहे हैं. 2018 में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाने के लिए उन्हें विशिष्ट हस्तशिल्प प्रादेशिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

पीढ़ियों से चला आ रहा है ये काम
अब्दुल कलाम का कहना है कि उनका परिवार पीढ़ियों से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां तैयार करता आ रहा है. वे भगवान गणेश, राधा-कृष्ण, भगवान शिव, भगवान राम समेत कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं, जिन्हें मंदिरों में स्थापित कर पूजा जाता है. वे इसे केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का कार्य मानते हैं.
अब्दुल कलाम बताते हैं कि एक मूर्ति को तैयार करने में 15 दिन से 2 महीने तक का समय लग जाता है. इन मूर्तियों को विशेष ऑर्डर पर ही तैयार किया जाता है. लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनका काम काफी प्रभावित हुआ है और अब ऑर्डर पहले की तुलना में काफी कम आ रहे हैं.

अब्दुल कलाम की कला का सम्मान
अब्दुल कलाम की कला की सराहना सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि बड़े मंचों पर भी की गई है. 2018 में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाने पर उन्हें विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. अब्दुल कलाम कहते हैं, “मुझे हिंदू धर्म से जुड़ी मूर्तियां बनाना अच्छा लगता है. यह काम मुझे मानसिक संतोष देता है. मेरे पूर्वज भी यही करते थे और अब मेरी अगली पीढ़ी भी इस काम को आगे बढ़ा रही है.”
लकड़ी पर नक्काशी और मूर्तिकला के जरिए सहारनपुर का यह मुस्लिम परिवार न केवल अपनी कला को जीवित रखे हुए है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे की मिसाल भी पेश कर रहा है.

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