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मथुरा-वृंदावन ही नहीं यहां भी होती है 40 दिनों की होली…ब्रजभाषा के गीतों से

Agency:News18 Himachal Pradesh

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40 Days Holi Celebration in Himachal: कुल्लू घाटी में मनाई जाने वाली होली का विशेष महत्व है, जो 40 दिनों तक चलती है. इस अनोखी परंपरा को वैश्विक (वैरागी) समुदाय निभाता है, जो भगवान रघुनाथ के कुल्लू आगमन से जुड़ी…और पढ़ें

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पारंपरिक

पारंपरिक होली संध्या के दौरान गायन करते लोग

हाइलाइट्स

  • कुल्लू घाटी में 40 दिनों तक होली मनाई जाती है.
  • वैरागी समुदाय भगवान रघुनाथ के आगमन से जुड़ी परंपरा निभाता है.
  • होली संध्या में ब्रज भाषा के पारंपरिक गीत गाए जाते हैं.

कुल्लू घाटी में मनाए जाने वाले त्यौहारी का विशेष महत्व रखता है. यहां वैरागीभगवान रघुनाथ के कुल्लू आगमन से ही सभी त्यौहारों का नाता जुड़ा हुआ है. ऐसे में यहां होली भी 40 दिनों तक मनाई जाती है. लेकिन वैरागी समुदाय द्वारा ही इस होली को मनाया जाता है. मथुरा वृंदावन की तरह ही 40 दिनों तक होली का त्यौहार मनाया जाता है.

होली संध्या का होता है आयोजन
कुल्लू स्थित हनुमानी बाग के नरसिंह मंदिर में ऐसी ही होली संध्या का आयोजन वैरागी समुदाय द्वारा किया गया. ऐसे में यहां होली के पारम्परिक गीतों का गायन किया गया. एकादशी महंत ने बताया कि कुल्लू में बसंत पंचमी से ही वैरागी समुदाय की होली शुरू हो जाती है. ऐसी में भगवान रघुनाथ के दरबार में पहला होली का गायन होता है. इसके बाद वैरागी समुदाय द्वारा 40 दिनों तक अलग अलग स्थानों में अपने लोगों के साथ होली संध्या का आयोजन करते है. होली संध्या के दौरान सभी लोग होली के पारम्परिक ब्रज भाषा में लिखे गानों को गाते है और रंगों के साथ होली मनाते है.

रघुनाथ के साथ कुल्लू आए थे वैरागी समुदाय के लोग
एकादशी महंत बताते है कि भगवान रघुनाथ के कुल्लू आगमन के साथ ही वैरागी समुदाय के लोग कुल्लू आए थे. ऐसे में मथुरा, वृंदावन, अयोध्या और हरिद्वार के आसपास के क्षेत्रों से वैरागी लोग भगवान रघुनाथ के साथ कुल्लू पहुंचाने और फिर यही आकर बस गए. इस दौरान इस समुदाय के लोगों ने अपने साथ कई रीति रिवाज भी उन स्थानों से लाए और भगवान रघुनाथ की इस नगरी में अयोध्या, वृन्दावन, मथुरा जैसे ही ऋतु का पालन करना शुरू कर दिया.

 हिमाचल के बाकी इलाकों से पहले खेली जाती है कुल्लू में होली
रजनी महंत बताती है कि आज भी वैरागी समुदाय के लोग पारंपरिक होली का आयोजन कर रहे है. ऐसे में यह बेहद खूबसूरत बात है कि आज की पीढ़ी भी इस परंपरा का निर्वहन कर रही है. यहां सभी उम्र के लोग एकता होकर होली संध्या में हिस्सा लेते है. जिसे इस समुदाय के लोग पारस्परिक मेल जोल से सभी त्यौहारों को मनाते है. उन्होंने बताया को कुल्लू घाटी में  हिमाचल के बाकी इलाकों से पहले ही होली खेल ली जाती है.

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