ट्रंप ने ऐसा क्या किया कि याद आ गया तानाशाह ईदी अमीन, भारतीयों ने छोड़ा था देश
Agency:News18Hindi
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1972 में युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने भारतीयों समेत दक्षिण एशियाई लोगों को 90 दिनों में देश छोड़ने का आदेश दिया. उन्होंने भारतीयों पर कर चोरी और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. 50,000 से अधिक एशियाई लोग शरण के लिए …और पढ़ें
हाइलाइट्स
- ट्रंप अवैध भारतीय अप्रवासियों को वापस भेज रहे हैं
- अमेरिकी एयरफोर्स का विमान इन प्रवासियों को लेकर पहुंचा है
- 1972 में ईदी अमीन ने भारतीयों को युगांडा छोड़ने का आदेश दिया था
वॉशिंगटन: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में अवैध रूप से घुसे अप्रवासियों को वापस भेजने में लगे हैं. इसमें भारतीयों की भी एक बड़ी संख्या है. 104 भारतीय नागरिकों को लेकर अमेरिकी एयरफोर्स का विमान पंजाब पहुंचा है. ट्रंप इस कदम से सीधे तौर पर सिग्नल देना चाहते हैं कि जो भी भारतीय अवैध रूप से अमेरिका में आया है उसे वापस जरूर लौटाया जाएगा. अभी तक 18,000 अवैध भारतीय नागरिकों की पहचान की गई है. लेकिन ट्रंप जो कर रहे हैं उसे देखकर आज एक बेहद पुरानी घटना याद आ गई, जिसके जरिए भारतीयों को लगभग 50 साल पहले भी एक देश से भागना पड़ा था. इस देश का नाम युगांडा है.
दरअसल, साल 1972 में युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने पूरी दक्षिण एशियाई आबादी को एक आदेश के जरिए 90 दिनों में देश छोड़ने को कहा था. इससे मुख्य रूप से भारतीय ही प्रभावित हुए थे. हालांकि ईदी अमीन का तानाशाही आदेश और ट्रंप का अवैध प्रवासियों के वापस भेजने के फैसले की तुलना नहीं की जा सकती. क्योंकि ट्रंप जिन भारतीयों को निकाल रहे हैं, न तो वे अमेरिका के नागरिक हैं और न ही वे वैध वीजा के जरिए वहां पहुंचे हैं. वहीं जिन भारतीयों को ईदी अमीन ने निकलने के लिए कहा था, वे वहां लंबे समय से रह रहे थे. उनमें से कुछ को हिंसा का सामाना करना पड़ा. युगांडा में रहने वाले लगभग 50,000 से ज्यादा एशियाई लोगों को अपने घर, दोस्त और वह सबकुछ जो उन्होंने पूरी जिंदगी में बनाया उसे छोड़ना पड़ा.
भारतीयों को क्यों पसंद नहीं करता था ईदी अमीन
ईदी अमीन बेहद क्रूर तानाशाह था. कथित तौर पर वह इंसानी मांस भी खाता था. ईदी अमीन ने भारतीयों पर कर चोरी करने, अफ्रीकी व्यापारियों के साथ भेदभाव करने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. ईदी अमीन ने तब कहा कि युगांडा की अर्थव्यवस्था यहां के स्वदेशी लोगों के हाथ में होनी चाहिए. 1970 के दशक में पूर्वी अफ्रीका में भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों को ‘एशियाई’ कहा जाता था. ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान यह भारतीय मूल के लोग गिरमिटिया मजदूरों के रूप में यहां पहुंचे थे. ये अच्छे बिजनेसमैन साबित हुए. 1962 में जब युगांडा आजाद हुआ तो ये युगांडा के मूलनिवासियों की आंखों में खटकने लगे.
इन देशों में ली थी शरण
द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक निष्कासित किए गए 50,000 से ज्यादा एशियाई लोगों में से कई ब्रिटिश नागरिक थे. लेकिन उनके पास प्रतिबंधित पासपोर्ट थे जो ब्रिटेन में ऑटोमैटिक एंट्री नहीं देता था. लेकिन लगभग 20,000 युगांडा के नागरिक थे. ईदी अमीन के तानाशाही आदेश के बाद वह बिना देश के लोग हो गए. उन्हें किसी अन्य देश ने भी नागरिक नहीं माना. जिन लोगों को ईदी अमीन ने भगया था उन्हें सिर्फ 120 डॉलर अपने साथ ले जाने की इजाजत थी. यहां से लोग ब्रिटेन, भारत, ऑस्ट्रिया, मोरक्को, कनाडा और यहां तक कि लैटिन अमेरिका के दूर-दराज के देशों में शरण ली.
New Delhi,New Delhi,Delhi
February 05, 2025, 15:50 IST