पहाड़ का एक अनोखा फूल जिस पर बने हैं कई गाने, दो माह में महका देगा कोना-कोना

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Pyoli flower : इस फूल में कोई खुशबू नहीं होती, लेकिन इसकी रंगत और रूप इसे विशेष बनाते हैं. प्योली का फूल पीले रंग का होता है. इसके खिलने से पहाड़ों में बसंत का आगाज मानते हैं.

प्योली का फूल
बागेश्वर. उत्तराखंड की सुंदरता को बढ़ाने में कई फूलों की भूमिका है. इनमें से एक फूल प्योली भी है. ये फूल बसंत ऋतु में खिलता है, और इसकी खासियत यह है कि ये केवल दो महीने फरवरी और मार्च में खिलता है. इस फूल का वैज्ञानिक नाम रेनवासिया इंडिका है. ये मुख्य रूप से उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है. प्योली की उसकी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है. मात्र दो महीने खिलने वाला ये फूल बसंत ऋतु में सालभर सुर्खियों में रहता है.
बागेश्वर के स्थानीय जानकार रमेश पांडेय ने लोकल 18 को बताया कि प्योली का फूल उत्तराखंड की लोक संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है. इसे खासतौर पर फूलदेई त्योहार में देहली पर चढ़ाया जाता है. साथ ही बसंत पंचमी पर भी इस फूल का महत्व है. हालांकि इस फूल में कोई खास खुशबू नहीं होती, लेकिन इसकी रंगत और रूप इसे विशेष बनाते हैं. प्योली का फूल पीले रंग का होता है. इसके खिलने से पहाड़ों में बसंत का आगाज माना जाता है. इसे पहाड़ों की खुशहाली और हरियाली का प्रतीक भी माना जाता है. प्योली के फूल की खूबसूरती को देखकर उत्तराखंड के कई गायक और संगीतकारों ने इस पर गाने भी बनाए हैं. इस फूल को लेकर कई कवियों, साहित्यकारों और कहानीकारों ने भी रचनाएँ की हैं. जो आज भी लोकसंगीत और साहित्य में जीवित हैं. फूलदेई जैसे त्योहारों पर बच्चे इस फूल को तोड़कर घर-घर जाकर बधाई देते हैं. ये फूल पहाड़ी परंपरा का खास हिस्सा है.
साथ ही प्योली के फूलों का इस्तेमाल रंग बनाने में भी किया जाता है. इसके फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार किए जाते हैं. जो पारंपरिक रूप से होली जैसे त्योहारों में उपयोग किए जाते हैं. इस फूल को लेकर कई लोककथाएँ और किवदंतियाँ भी हैं. जिनमें इसे प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है. प्योली का फूल न केवल अपनी खूबसूरती से पहाड़ों को सजाता है, बल्कि ये पहाड़ी जीवन और संस्कृति से जुड़ी एक अनमोल धरोहर भी है. हर साल इसके खिलने से पहाड़ी इलाकों में खुशी और उल्लास का माहौल बनता है. यह फूल पहाड़ी लोक जीवन का अभिन्न हिस्सा बनकर रह जाता है.
Bageshwar,Uttarakhand
March 14, 2025, 23:46 IST
