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ये है दुनिया का सबसे बड़ा बीज – 40 किलो वजनी, आधे मीटर लंबा,सोने से कीमती

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world longest seed : दुनिया का केवल एक ही देश है जहां ये बीज मिलता है. ये बीज इतना लंबा चौड़ा होता है कि बीज लगता ही नहीं. ये मानव शरीर के निचले हिस्से जैसा ज्यादा लगता है. कभी सोने से ज्यादा कीमती मानता जाता थ…और पढ़ें

ये है दुनिया का सबसे बड़ा बीज - 40 किलो वजनी, आधे मीटर लंबा,सोने से कीमती

हाइलाइट्स

  • कोको डी मेर का बीज 40 किलोग्राम तक भारी होता है.
  • इसका पेड़ पांच से छह मंजिला इमारत से लंबा हो सकता है
  • एक जमाने में ये सोने से ज्यादा कीमती समझा जाता था

क्या आपको मालूम है कि दुनिया का सबसे बड़ा बीज कितना बड़ा और वजन का होता है. इसके बारे में अगर आपको पता चला तो शायद आप भी एकबारगी हैरत में तो आ ही जाएंगे. और जब इस चित्र को देखेंगे तो हैरानी और बढ़ेगी, क्योंकि ये बीज होता भी एक खास आकृति का है. इसे दुर्लभ बीज माना जाता है.

वो पेड़ जिसका ये बीज 40 किलोग्राम भारी होता है और आधे मीटर लंबाई वाला, वो कोको डी मेर (Coco de Mer) का पेड़ है. ये एक तरह का ताड़ का पेड़ है, जिसका वैज्ञानिक नाम Lodoicea maldivica है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा बीज माना जाता है. यह एक दुर्लभ और अनोखा बीज है, जो प्रकृति के चमत्कारों में एक है.

यह ताड़ (पाम) परिवार का हिस्सा है और मुख्य रूप से सेशेल्स द्वीप समूह के प्रालिन और क्यूरियस द्वीपों पर पाया जाता है. इस पेड़ यानि कोको डी मेर का इतिहास भी कम रोचक नहीं है.

16वीं और 17वीं सदी में जब यूरोपीय नाविकों ने इसे हिंद महासागर में तैरते हुए देखा, तो इसे “समुद्री नारियल” समझा.

कहानी भी खासी रोचक
यह बीज सेशेल्स में ही प्राकृतिक रूप से उगता है. 16वीं और 17वीं सदी में जब यूरोपीय नाविकों ने इसे हिंद महासागर में तैरते हुए देखा, तो इसे “समुद्री नारियल” समझा. उस समय किसी को नहीं पता था कि यह कहां से आता है. इसका नाम “कोको डी मेर” फ्रांसीसी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “समुद्र का नारियल”. बाद में 18वीं सदी में सेशेल्स की खोज के साथ इसके पेड़ की पहचान हुई. यह खोज प्रकृति के रहस्यों को उजागर करने का एक बड़ा कदम थी.

ये बीज कितना लंबा चौड़ा
कोको डी मेर का बीज अपने विशाल आकार के लिए प्रसिद्ध है. यह आमतौर पर 40 से 50 सेंटीमीटर लंबा और 30 सेंटीमीटर चौड़ा होता है. इसका वजन 15 से 30 किलोग्राम तक हो सकता है, जो इसे दुनिया का सबसे भारी बीज बनाता है. कुछ असाधारण मामलों में इसका वजन 40 किलोग्राम तक भी दर्ज किया गया. इसका आकार इतना बड़ा होता है कि इसे एक व्यक्ति के लिए उठाना मुश्किल हो सकता है. यह आकार इसे अन्य सभी बीजों से अलग करता है, जैसे नारियल (Cocos nucifera), जो इससे बहुत छोटा होता है.

इससे जो पेड़ बनता है उसका नाम कोको डि मेर होता है. ये पांच से छह मंजिला इमारतों से ज्यादा ऊंचा होता है.

इसकी बनावट अनोखी
इस बीज की बनावट और दिखावट अनोखी है. यह दो हिस्सों में बंटा हुआ प्रतीत होता है, जिसे “द्विलंबी” (Bilobed) संरचना कहते हैं. इसका बाहरी आवरण मोटा, कठोर और भूरा होता है, जो इसे पर्यावरणीय खतरों से बचाता है. इसकी आकृति कई बार मानव शरीर के निचले हिस्से से मिलती-जुलती लगती है, जिसके कारण इसे ऐतिहासिक रूप से जादुई और औषधीय गुणों से जोड़ा गया. अंदर का हिस्सा सफेद और मांसल होता है, जो खाने योग्य होता है, हालांकि यह बहुत स्वादिष्ट नहीं माना जाता इसकी संरचना इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मदद करती है.

पेड़ होता है खासा लंबा और पत्तियां तो बाप रे बाप
कोको डी मेर का पेड़ भी उतना ही प्रभावशाली है. यह 25-34 मीटर तक ऊंचा हो सकता है. इसके पत्ते 7-10 मीटर लंबे और 4-5 मीटर चौड़े होते हैं. यह एक द्विलिंगी (Dioecious) प्रजाति है, यानी नर और मादा पेड़ अलग-अलग होते हैं मादा पेड़ ही बीज पैदा करते हैं, और एक बीज को पूरी तरह विकसित होने में 6-7 साल लगते हैं. यह पेड़ उष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है, जहां मिट्टी अच्छी तरह से जल निकासी वाली और हवा में नमी अधिक हो. सेशेल्स का अनोखा पारिस्थितिकी तंत्र इसे बढ़ने के लिए आदर्श बनाता है.

मादा और नर पेड़ मिलकर बनाते हैं बीज
कोको डी मेर का प्रजनन धीमा और जटिल है. नर पेड़ लंबे फूलों के गुच्छे पैदा करते हैं, जो परागण के लिए हवा और कीड़ों पर निर्भर करते हैं. मादा पेड़ पर फल (बीज) बनने में सालों लगते हैं. एक बार पकने के बाद, बीज जमीन पर गिरता है और अंकुरण शुरू करता है. अंकुरण की प्रक्रिया भी धीमी है. इसके लिए नमी, गर्मी और पोषक तत्वों की जरूरत होती है. एक बीज से नया पेड़ बनने में 20-40 साल तक लग सकते हैं, जो इसकी दुर्लभता का कारण भी है.

पहले सोने से ज्यादा कीमती समझा गया
ऐतिहासिक रूप से, कोको डी मेर को जादुई और औषधीय गुणों वाला माना जाता था। इसे प्राचीन समय में मसाले और सोने से भी ज्यादा कीमती समझा गया। आज यह सेशेल्स की संस्कृति और पर्यटन का प्रतीक है। इसकी बिक्री सख्ती से नियंत्रित है, और एक बीज की कीमत सैकड़ों से हजारों डॉलर तक हो सकती है। यह संरक्षित प्रजाति है, और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (वल्ली डी माई) में संरक्षित किया जाता है।

यह इतना बड़ा कैसे होता है?
कोको डी मेर का विशाल आकार इसके विकास और पर्यावरण का परिणाम है. इसके पीछे कई कारण हैं:
– पोषक तत्वों का संग्रह: बीज में भारी मात्रा में पोषक तत्व (स्टार्च, प्रोटीन, और वसा) जमा होते हैं. यह भ्रूण को लंबे समय तक जीवित रखने और अंकुरण के लिए ऊर्जा देने के लिए जरूरी है, क्योंकि अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है.
– लंबा विकास काल: बीज को परिपक्व होने में 6-7 साल लगते हैं. इस दौरान यह धीरे-धीरे पेड़ से पोषण लेता रहता है, जिससे इसका आकार बढ़ता जाता है.
– सुरक्षा की जरूरत: इसका मोटा और कठोर आवरण इसे जंगली जानवरों, नमी और कठिन परिस्थितियों से बचाता है। यह बड़ा आकार और मजबूती इसे लंबे समय तक जीवित रहने में मदद करती है.
– पर्यावरणीय अनुकूलन: सेशेल्स की उष्णकटिबंधीय जलवायु और समृद्ध मिट्टी ने पेड़ को इतना बड़ा बीज बनाने की क्षमता दी. यह बीज पानी में तैर नहीं सकता, लेकिन जंगल की जमीन पर अंकुरण के लिए अनुकूलित है.

आज कोको डी मेर संकट में है। अवैध कटाई, जलवायु परिवर्तन और सीमित प्रजनन दर इसके लिए खतरा हैं. सेशेल्स सरकार और अंतरराष्ट्रीय संगठन इसे बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. इसके बीजों की बिक्री पर सख्त नियम हैं. इसे केवल प्रमाणित स्रोतों से ही खरीदा जा सकता है.

कुल मिलाकर कोको डी मेर प्रकृति का एक अनमोल रत्न है. इसका विशाल आकार, अनोखी संरचना और सांस्कृतिक महत्व इसे दुनिया के सबसे खास बीजों में से एक बनाते हैं. यह इतना बड़ा इसलिए होता है क्योंकि यह अपने पर्यावरण और लंबी जीवन प्रक्रिया के लिए अनुकूलित है। यह बीज हमें प्रकृति की विविधता और उसकी अनंत संभावनाओं की याद दिलाता है.

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