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ब्रज में होली का असली मजा रसिया और धमार के बिना अधूरा, जानिए क्यों खास है ये..

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ब्रज की होली में जात-पात भूलकर लोग श्रीकृष्ण-राधा के रंग में रंग जाते हैं. पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने होली के गीतों, रसिया और धमार के जरिए इसे जीवंत किया है.

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ब्रज

ब्रज की होली.

हाइलाइट्स

  • होली में रसिया गाना ब्रज की धरोहर है.
  • रसिया गायन, श्रीकृष्ण-राधा के प्रेम का संगीतमय वर्णन है.
  • रसिया गायन में ढप, ढोल, और झांझ का उपयोग होता है.

मथुरा: ब्रज की होली कुछ निराली ही होती है. यहां लोग जात-पात, ऊंच-नीच सब भूलकर सिर्फ श्रीकृष्ण और राधा के रंग में रंग जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे सतरंगी रंगों ने सबको अपना बना लिया हो. होली और ब्रज का रिश्ता सदियों पुराना है. इस रिश्ते को पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने अपने शब्दों में खूबसूरती से पिरोया है. उन्होंने होली के गीतों, रसिया और चौपाइयों के जरिए ब्रज की होली को जीवंत कर दिया है.
होली पर ब्रज में रसिया गाने का रिवाज बहुत पुराना है. रसिया, श्रीकृष्ण और राधा जी के प्रेम का गुणगान करते हैं. इन गीतों में श्रीकृष्ण की लीलाओं का बड़ा ही प्यारा वर्णन होता है. रसिया, ब्रज की संस्कृति का अहम हिस्सा हैं. इन गीतों में ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति का भाव झलकता है. सरल शब्दों में प्रेम का संदेश देने वाले ये गीत संगीत और भक्ति का अनोखा संगम हैं. गाँव की चौपालों में ढप, ढोलक और झाँझ की थाप पर जब रसिया गूंजते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा वातावरण प्रेम और भक्ति के रंग में डूब गया हो.

धमार: ब्रज की होली का विशेष राग
पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में मानसिंह तोमर और नायक बैजू ने धमार गायकी की नींव रखी. उन्होंने लोकगीतों को लेकर उन्हें ज्ञान की अग्नि में तपाकर एक नया रूप दिया. धमार, ब्रज की होली का एक खास राग है. पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया बताते हैं कि धमार गायकी का उद्देश्य एक रोमांटिक माहौल बनाना होता है. इसमें आलाप के बाद बंदिश गाई जाती है और फिर लयकारी होती है. अलग-अलग तरह की लयकारियों से गायक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं. पखावज और गायकी के बीच एक तरह का संवाद होता है जो सुनने वालों को रस की अनुभूति कराता है.

संगीत का विकास
समय के साथ धमार गायकी का प्रसार पूरे देश में हुआ. नारायण शास्री, बहराम खाँ, पं॰ लक्ष्मणदास, मोहम्मद अली खाँ जैसे कई नामी गायक हुए जिन्होंने अपनी गायकी से धमार को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया. इसी तरह मृदंग और वीणा जैसे वाद्ययंत्रों के वादन में भी बदलाव आये. पहले ये वाद्ययंत्र सिर्फ शास्त्रीय संगीत में बजाए जाते थे लेकिन बाद में ध्रुपद और धमार गायकी में भी इनका इस्तेमाल होने लगा.
ब्रज की होली सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि हमारी संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है. यहाँ का संगीत, रसिया और धमार हमें अपनी समृद्ध परंपरा की याद दिलाते हैं.

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