समुद्र में 6,560 फीट नीचे खुदाई कर रहा चीन, अनोखे खजाने की तलाश, मिल गया तो…
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चीन साउथ चाइना सी में 6,560 फीट नीचे ‘डीप-सी स्पेस स्टेशन’ बना रहा है, जिसका नाम ‘तियांगोंग’ है. इसका मकसद समुद्र की गहराइयों में रिसर्च और प्राकृतिक संसाधनों की खोज करना है. यहां अद्भुत खजाना छिपा हुआ है.
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चीन साउथ चाइना सी में काफी गहराई में खजाने की तलाश में उतर गया है. (Photo-X-@pubity)
हाइलाइट्स
- चीन उस जगह पहुंचना चाहता है, जहां ऊर्जा का सबसे ताकतवर स्रोत है.
- इतना ही नहीं, समुद्र के इतने नीचे सोना, चांदी, तांबा और जस्ता भरपूर.
- समुद्र की इस गहराई से भूकंप और सुनामी का पता लगाना आसान होगा.
चीन आजकल कई अनोखे प्रयोग कर रहा है. स्पेस में वह अमेरिका को टक्कर दे रहा था, अब उसने समुद्र की गहराई में ऐसा काम किया है कि पूरी दुनिया चमत्कृत है. दरअसल, चीन साउथ चाइना सी में 6,560 फीट नीचे ‘डीप-सी स्पेस स्टेशन’ बना रहा है. वैसे तो उसने इसका मकसद समुद्र की गहराई में छिपे ‘खजाने’ की खोज करना है. लेकिन इसकी कीमत जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. आज हम आपको इस स्पेस स्टेशन की एक-एक बात बताने जा रहे हैं.
चीन का ‘डीप-सी स्पेस स्टेशन’ समुद्र तल से 2000 मीटर नीचे होगा. इसमें एक साथ 6 साइंटिस्ट एक महीने तक रहकर काम कर पाएंगे. 2030 तक यह स्पेस स्टेशन काम करने लगेगा. इसका डिजाइन एक छोटे पनडुब्बी की तरह होगा, जिसका वजन 250 टन, लंबाई 22 मीटर, चौड़ाई 7 मीटर, और ऊंचाई 8 मीटर होगी. इसे ‘तियांगोंग’ यानी ‘स्वर्ग का महल’ नाम दिया गया है. चीन के मुताबिक, इसका मकसद समुद्र की गहराइयों में रिसर्च करना है और समुद्र में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों की खोज करना है.
किस खजाने की तलाश?
साइंटिस्ट के मुताबिक, चीन गहरे समुद्र में मौजूद गर्म और ठंडे पानी पर रिसर्च करेगा. क्योंकि इस जगह मीथेन से भरपूर हाइड्रोथर्मल वेंट शामिल हैं. इन वेंट में मीथेन हाइड्रेट्स यानी ज्वलनशील बर्फ के विशाल भंडार हैं, यह ऊर्जा का बड़ा स्रोत हो सकते हैं. दूसरा, यहां से रहकर भूकंप जैसी गतिविधियों पर रिसर्च की जा सकती है. इतना ही नहीं, अगर जमीन के अंदर कोई देश हलचल करने की कोशिश करेगा, जैसे कोई परमाण परीक्षण करने की कोशिश करेगा, तो उसका पता पहले चल जाएगा. सुनामी के बारे में भी घंटों पहले सूचना मिल सकेगी.
आखिर हाइड्रोथर्मल वेंट क्या होता है?
हाइड्रोथर्मल वेंट (Hydrothermal Vent) समुद्र तल पर स्थित क्रैक्स से निकलने वाले गर्म पानी के स्रोत होते हैं, जो समुद्री हलचल के कारण बनते हैं. ये वेंट गहरे समुद्र में ज्वालामुखीय गतिविधियों के निकट पाए जाते हैं और पृथ्वी की सतह से कई किलोमीटर नीचे मैग्मा के संपर्क में आने वाले पानी को गर्म करके वापस समुद्र में छोड़ते हैं.
कैसे बनता है हाइड्रोथर्मल वेंट?
समुद्र तल पर मौजूद इन दरारों में जब ठंडा पानी प्रवेश करता है, तो धरती के भीतरी हिस्से में मौजूद मैग्मा के संपर्क में आकर 400°C तक गर्म हो जाता है. खनिजों से भरपूर पानी वापस निकलता है. यह गर्म पानी जब पुनः समुद्र तल पर आता है, तो इसमें कई तरह के घुले हुए खनिज और गैसें होती हैं, जो हाइड्रोथर्मल वेंट का निर्माण करती हैं.
कितने तरह के हाइड्रोथर्मल वेंट
- हाइड्रोथर्मल वेंट दो तरह के होते हैं. ब्लैक स्मोकर (Black Smoker) यह गहरे समुद्र में पाया जाता है. इससे निकलने वाला पानी बहुत गर्म लगभग 350-400°C होता है. इसमें सल्फाइड खनिज अधिक होते हैं, जिससे यह काले धुएं जैसा दिखता है.
- 2. व्हाइट स्मोकर (White Smoker) यह थोड़ा कम गर्म (100-300°C) होता है. इससे निकलने वाले पदार्थों में कैल्शियम और बैरियम अधिक होते हैं, जिससे यह सफेद रंग का दिखाई देता है.
असल खजाना यहां
हाइड्रोथर्मल वेंट समुद्र के अंधेरे और अत्यधिक दबाव वाले वातावरण में अनोखे जीवों को रहने का अवसर देते हैं. यहां के जीव सूर्य के प्रकाश के बिना रासायनिक ऊर्जा से अपना भोजन बनाते हैं. इन वेंट्स से निकलने वाले पदार्थों में सोना, चांदी, तांबा और जस्ता जैसे मूल्यवान धातु पाए जाते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा और शनि के चंद्रमा एन्सेलेडस में इसी प्रकार के वेंट हो सकते हैं, जहां जीवन की संभावनाएं हैं.
New Delhi,New Delhi,Delhi
February 17, 2025, 20:43 IST
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