शख्स ने बयां किया नौकरी का दर्द, ‘एक सैलरी में दे रहे हैं 3 लोगों का काम’

नौकरी में कर्मचारियों से कितना काम कराना चाहिए और कितना कराया जाता है, इस पर बहुत विवाद और बहस होती है. कितने घंटे काम करना है, यह भी विवाद और बहस का मुद्दा बन जाता है. कई बार कर्मचारियों पर ज्यादा काम का बोझ डाल दिया जाता है. खासतौर पर किसी कर्मचारी के काम छोड़कर जाने के बाद ऐसी स्थिति अस्थायी रूप से पैदा हो सकती है, लेकिन आजकल की नौकरियों में ऐसा भी देखा गया है कि एक कर्मचारी से तीन-तीन लोगों का काम करवाया जा रहा है, वह भी बस एक की सैलरी में. हाल ही में रेडिट पर एक यूजर ने कुछ ऐसा लिखा कि सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया.
एक ही सैलरी में तीन लोगों का काम
रेडिट की इस पोस्ट का टाइटल था, “क्या ये सिर्फ मुझे लगता है, या अब नई ‘नॉर्मल’ नौकरी में तीन लोगों का काम एक की सैलरी में करना पड़ता है?” इस पोस्ट ने नौकरी की दुनिया की कड़वी हकीकत को सामने ला दिया. यूजर ने बताया कि उन्हें एक ऐसी जॉब ओपनिंग मिली, जिसमें डिग्री, 5 साल से ज्यादा अनुभव, ग्राफिक डिजाइन, सोशल मीडिया मैनेजमेंट, वीडियो एडिटिंग, एक्सेल में महारत, कस्टमर सर्विस, डेटा एनालिसिस की जरूरत है. इस तरह उन्हें तीन फुल-टाइम रोल्स का काम चाहिए था. और बदले में सैलरी के नाम पर बस 50,000 अमेरीकी डॉलर मात्र, यानी करीब 42.7 लाख रुपये. इसमें भी किसी तरह के बेनिफिट्स नहीं मिलेंगे. यह खुलासा जानकर लोग हैरान रह गए.
क्या हो सकती है इसकी वजह?
यूजर ने लिखा, “पता नहीं कब से ‘कम में ज्यादा करो’ नौकरी का स्टैंडर्ड बन गया. क्या यह इकोनॉमी की वजह से है? छंटनी की वजह से? या हमें यह समझाया जा रहा है कि बर्नआउट नॉर्मल है? आपने अपनी इंडस्ट्री में भी ऐसा ‘जॉब क्रीप’ देखा है? क्या यह पूंजीवाद का नया रूप है… या इससे भी बदतर कुछ?” पोस्ट ने इंटरनेट पर तहलका मचा दिया और लोगों ने अपनी-अपनी कहानियां शेयर करनी शुरू कर दीं. सोशल मीडिया पर यह चर्चा आग की तरह फैल गई, क्योंकि हर कोई इस दर्द को समझ रहा था.

कई लोगों का मानना है कि कर्मचारियों को ज्यादा लोगों का काम देना एक सामान्य बात होती जा रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
सिलसिला चलता रहता है
इस पर एक यूजर ने लिखा, “हर बार जब इकोनॉमी में कुछ बुरा होता है, कंपनियां कर्मचारियों को निचोड़कर उसकी भरपाई करती हैं. फिर जब हालात ठीक होते हैं, तो वे इसे जायज ठहराने के तरीके ढूंढ लेती हैं. यह सिलसिला चलता रहता है, और फिर कुछ और बुरा होता है, तो और जोर से निचोड़ा जाता है.” यह बात कई लोगों को सच्ची लगी.
कैसे होता है ये?
कई लोगों ने इस समस्या की जड़ को 2008 की मंदी से जोड़ा. एक यूजर ने लिखा, “2008 में कुछ ऐसा हुआ कि मेहनतकश वर्ग से दौलत छीनकर अमीरों की जेब में चली गई. इसके बाद से पैसे का बंटवारा देखो, यह हैरान करने वाला है. यह सब इतना साफ है, फिर भी लोग इकोनॉमी को प्राकृतिक आपदा की तरह देखते हैं, न कि कुछ लोगों के फायदे के लिए बनाया गया सिस्टम.” इस कमेंट ने कई लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. एक और यूजर ने बताया, “मैंने बार-बार देखा है कि लोग या तो निकाले जाते हैं या गुस्से में नौकरी छोड़ देते हैं. फिर उनकी जिम्मेदारियां बाकी कर्मचारियों पर डाल दी जाती हैं. यह सिलसिला तब तक चलता है, जब तक बचे हुए कर्मचारी सचमुच तीन लोगों का काम करने लगते हैं.”
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सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे पूंजीवाद का नया चेहरा बता रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, “कंपनियां अब सिर्फ तिमाही नतीजों की फिक्र करती हैं. अगर सेल्स नहीं बढ़ती, तो कर्मचारियों को निचोड़ा जाता है या निकाला जाता है.” दूसरों यूजर्स ने बताया कि छोटी कंपनियों में यह समस्या और बड़ी है, क्योंकि वहां “सबको हर काम सीखना पड़ता है” का बहाना चलता है. कई लोगों ने शिकायत है कि नौकरी के विज्ञापन अब “सुपरह्यूमन” की तलाश करते हैं, जो हर काम में माहिर हो, लेकिन सैलरी वही पुरानी रहती है. एक अन्य यूजर ने लिखा, “50,000 में इतना काम? यह तो मजाक है!”
