वाह! गाय के गोबर से बनी लकड़ी से होलिका दहन, न पेड़ कटेगा, न प्रदूषण होगा!

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Holi 2025: सूरत में होलिका दहन में गौ-काष्ठ का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे पर्यावरण संरक्षण और गायों की सेवा हो रही है. इस साल 200 टन से अधिक गौ-काष्ठ के उपयोग की उम्मीद है.

सूरत में होलिका दहन के लिए गौ-काष्ठ की मांग
हाइलाइट्स
- सूरत में होलिका दहन में गौ-काष्ठ का उपयोग बढ़ा.
- 200 टन से अधिक गौ-काष्ठ के उपयोग की उम्मीद है.
- गौ-काष्ठ से पर्यावरण संरक्षण और गायों की सेवा होती है.
सूरत: गुजरात के सूरत में पर्यावरण को बचाने के लिए होलिका दहन में गौ-काष्ठ का उपयोग बढ़ रहा है. लकड़ी की जगह गाय के गोबर से बनी स्टिक से वैदिक होली मनाई जा रही है. गौ-काष्ठ से लकड़ी की मांग कम करना, गायों की सेवा करना और वायरस नियंत्रण सहित कई पर्यावरणीय लाभ हैं. इस साल सूरत में 200 टन से अधिक गौ-काष्ठ के उपयोग की उम्मीद है.
बता दें कि पिछले पांच सालों में वैदिक होली का कॉन्सेप्ट ज्यादा लोकप्रिय हो गया है. पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण, लोग अब होलिका दहन में लकड़ी की जगह गौ-काष्ठ का उपयोग करने लगे हैं. राज्यभर के बड़े शहरों में, लोग वैदिक होली मनाने लगे हैं, जिसमें गाय के गोबर का संग्रह कर आधुनिक मशीनों से गोबर और अन्य वेस्ट घास से गौ-काष्ठ बनाई जाती है.
बढ़ रही है मांग
विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल सिर्फ सूरत में ही 200 टन से अधिक गोबर स्टिक और गोबर का उपयोग होलिका दहन में होने की संभावना है. पर्यावरण बचाने की दिशा में लोगों की बढ़ती जागरूकता के कारण, अब 30 से 40 प्रतिशत होलिका दहन में लकड़ी की जगह गोबर स्टिक का उपयोग हो रहा है. मार्च महीने की शुरुआत से ही होलिका दहन के लिए गौ-काष्ठ के ऑर्डर आने शुरू हो जाते हैं. ये ऑर्डर 200 किलोग्राम से लेकर 1,200 किलोग्राम तक के होते हैं, जो दर्शाता है कि गौ-काष्ठ की मांग काफी बढ़ रही है.
वसंत और शिशिर ऋतु के संधिकाल के दौरान, वातावरण बहुत प्रदूषित हो जाता है और कई वायरस उत्पन्न होते हैं. ऐसे समय में गाय के गोबर से बने गौ-काष्ठ का उपयोग करने से इन वायरस का नाश किया जा सकता है. इसके अलावा, गौ-काष्ठ का उपयोग करने से गायों की स्वावलंबन में भी मदद मिलती है, जो पशुओं के कल्याण को प्रोत्साहित करता है.
बड़े पैमाने पर उत्पादन
सूरत पांजरापोल के जनरल मैनेजर अतुल वोहरा के अनुसार, पांजरापोल की चार संस्थाओं में मिलाकर 11,000 से अधिक पशु आश्रय ले रहे हैं. पिछले पांच सालों में लोगों में जागरूकता बढ़ने के कारण और पिछले साल की बिक्री को ध्यान में रखते हुए, इस साल 60 टन के ऑर्डर की संभावना है. 20 से 25 कारीगर इस गौ-काष्ठ बनाने का काम कर रहे हैं और अब तक 15 से 20 टन गोबर स्टिक तैयार की जा चुकी है. गौ-काष्ठ की कीमत लकड़ी से काफी सस्ती है, जिसमें इस साल एक किलो का भाव मात्र रु. 25 है.
भावेश जरीवाला नाम के एक ग्राहक ने बताया कि वे पिछले चार साल से गौ-काष्ठ खरीद रहे हैं. उनके अनुसार, वातावरण में ऑक्सीजन बनाए रखने, जंगलों और पेड़ों का संरक्षण करने, और प्रदूषण कम करने के लिए गोबर स्टिक का उपयोग करना आवश्यक है.
March 11, 2025, 12:02 IST
