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वक्फ कानून से जुड़े वो चार पॉइंट्स, जिनकी कसौटी पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: वक्फ एक्ट, 2025 पर बहस अब तेज हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अंतरिम फैसला 5 मई तक टाल दिया. केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. कोर्ट ने उसे मोहलत दी, लेकिन शर्तें भी लगा दीं. सरकार ने भरोसा दिलाया कि अगली सुनवाई तक वह न तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति करेगी और न ही किसी वक्फ संपत्ति का चरित्र या दर्जा बदलेगी. लेकिन अदालत का रुख पूरी तरह शांत नहीं था. सवाल कई थे. और गंभीर भी. लगभग दो दिन की सुनवाई में यह तो साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट किन पॉइंट्स पर फैसला सुनाएगा. आइए आपको उन्हीं चार‍ बिंदुओं के बारे में विस्तार से बताते हैं जो SC के फैसले का आधार बन सकते हैं.

नए वक्फ कानून पर क्यों उठा विवाद?

16 अप्रैल को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुआई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस कानून के खिलाफ दायर करीब 65 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी. इन याचिकाओं में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, राजद के मनोज झा, सपा के ज़िया उर रहमान, कांग्रेस के इमरान मसूद और मोहम्मद जावेद, पूर्व सांसद उदित राज, दारुल उलूम देवबंद के मौलाना महमूद मदनी, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और सीपीआई जैसे नाम शामिल हैं.

क्या है Article 26 का मामला?

सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि ये कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है. अनुच्छेद 26 हर धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक मामलों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार देता है. ये अधिकार सिर्फ तीन शर्तों पर सीमित किया जा सकता है- लोक व्यवस्था, नैतिकता और जनस्वास्थ्य.

  • 1. सबसे विवादित बिंदु: वक्फ बाय यूजर

वक्फ बाय यूजर यानी वो जमीन जिसे लंबे समय से धार्मिक या चैरिटेबल कार्यों के लिए उपयोग किया गया हो, भले ही वो रजिस्टर्ड न हो. 2025 के नए कानून में इसे भविष्य की पेशकशों के लिए खत्म कर दिया गया है. अब सिर्फ वही संपत्तियां वक्फ मानी जाएंगी जो पहले से रजिस्टर्ड हैं. और अगर उस जमीन पर कोई विवाद हो या सरकार का दावा हो कि वो सरकारी जमीन है, तो वो वक्फ नहीं मानी जाएगी.

सरकार का कहना है कि वक्फ के नाम पर कब्जे बढ़े हैं. इसलिए वक्फ बाय यूजर जैसी व्यवस्था को खत्म करना जरूरी हो गया. लेकिन कोर्ट ने सवाल उठाया. चीफ जस्टिस बोले, ‘अगर कोई जमीन 300 साल से इस्तेमाल हो रही है तो उसे रजिस्टर्ड कैसे किया जाए? जेनुइन मामलों का क्या?’ याचिकाकर्ताओं ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2019 अयोध्या फैसले में भी वक्फ बाय यूजर की वैधता को स्वीकार किया था.

  • 2. जिला कलेक्टर को मिली ‘जबरदस्त’ ताकत

नए कानून के तहत अगर कलेक्टर कह दे कि कोई जमीन सरकारी है, तो वह तुरंत वक्फ की श्रेणी से बाहर हो जाती है, भले ही मामला अदालत में लंबित हो. ये धारा 3(c) का अहम प्रोविजन है. इसका मतलब ये हुआ कि एक अफसर के फैसले से वक्फ जमीन का दर्जा बदल सकता है. कोर्ट ने कहा, इस पर भी स्टे पर विचार किया जाएगा.

  • 3. गैर-मुस्लिम वक्फ बोर्ड में क्यों?

एक और बड़ा सवाल था, क्या गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड का सदस्य बनाया जा सकता है? याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘ये अनुच्छेद 26(b), 26(c), और 26(d) का सीधा उल्लंघन है. धार्मिक मामलों का संचालन समुदाय का अधिकार है. उसमें बाहरी हस्तक्षेप नहीं हो सकता.’ केंद्र ने सफाई दी कि इससे समुदाय के विशेषाधिकार प्रभावित नहीं होंगे. लेकिन कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ. CJI ने तीखा सवाल पूछा, ‘क्या अब आप मुस्लिमों को हिंदू धार्मिक न्यासों में शामिल करेंगे?’ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने माना कि अगर कोई राज्य ऐसा करता है तो उसकी नियुक्ति रद्द मानी जाए.

  • 4. अब लिमिटेशन एक्ट भी लागू?

एक और बड़ा बदलाव यह है कि 2025 का कानून लिमिटेशन एक्ट को वक्फ प्रॉपर्टीज पर लागू करता है. यानी अब अगर जमीन पर कब्जा हो गया और काफी वक्त गुजर गया तो कानूनी दावा नहीं किया जा सकेगा. 1995 के कानून में लिमिटेशन एक्ट से वक्फ को छूट थी. मतलब, किसी भी वक्त कब्जा हटाया जा सकता था. सिब्बल ने कहा कि ‘ये वक्फ की रक्षा के खिलाफ है.’ CJI इस पर बोले कि ‘लिमिटेशन एक्ट के फायदे भी हैं, नुकसान भी.’

आगे क्या होगा?

कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से परहेज किया. लेकिन कई धाराओं पर स्टे देने के संकेत दिए. सबसे पहले गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति और कलेक्टर की शक्तियों पर कोर्ट का रुख अहम होगा. 5 मई को अगली सुनवाई है. इस कानून को लेकर अदालत का अंतिम फैसला आने में वक्त लग सकता है.

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