मसूरी में कभी शान की सवारी था 'रिक्शा', अब इतिहास बनने के कगार पर

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Public Opinion: रिक्शा चालक गिन्नी लाल ने लोकल 18 से कहा कि वह 54 साल से रिक्शा चला रहे हैं. इस काम से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. इसी काम से उन्होंने अपने बच्चों की शादी की है. पहले काम अच्छा चलता था …और पढ़ें

अंग्रेजों ने हाथ रिक्शा की शुरुआत की थी.
देहरादून. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित पहाड़ों की रानी मसूरी में घूमने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. यह पर्यटन स्थल ब्रिटिशकाल से ही मशहूर रहा है. आज यहां जाने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं लेकिन एक वक्त था, जब यहां ज्यादा गाड़ियां नहीं चलती थीं. रिक्शा और तांगा के जरिए ही यहां सफर किया जाता था. मसूरी की माल रोड पर अंग्रेजों के जमाने से ही हाथ रिक्शा चलाया जाता था लेकिन अब टैक्सी और रेंटल बाइक के चलते रिक्शा चलाने वाले लोगों का रोजगार मंदा हो गया है. अपने पूर्वजों से मिले रिक्शा को चलाने वाले चालक बताते हैं कि अब ज्यादातर लोग इसमें सफर नहीं करते हैं. उनके लिए रोजी रोटी कमाना मुश्किल हो गया है.
रिक्शा चालक गिन्नी लाल ने लोकल 18 से कहा कि वह 54 साल से रिक्शा चलाने का काम कर रहे हैं. इसी काम से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं और अपने बच्चों की शादी भी इसी से की है. पहले अच्छा काम चलता था लेकिन अब एक-दो चक्कर ही मिल पाते हैं. इस तरह वह अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. रिक्शा चालक उत्तम नेगी ने कहा कि यह काम हमारा पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला काम है. हमारे दादा पहले रिक्शा चलाते थे, उस वक्त हाथ रिक्शा हुआ करता था. उसके बाद पिता चलाने लगे और अब कुछ साल से वह चला रहे हैं. जिस तरह से काम चल रहा है, हमें लगता है कि आने वाले वक्त में हमें कुछ और ही काम करना पड़ेगा.
आश्वसन के अलावा कुछ नहीं मिलता
रिक्शा चालक गुड्डू सेमलियाट ने कहा कि हर जगह परिवर्तन हो रहा है लेकिन मसूरी में परिवर्तन नहीं हो रहा है. आज रेंटल बाइक और टैक्सी के ज्यादा चलन से लोग या तो इनसे सफर करते हैं या फिर अपने निजी वाहन से आते हैं. अब ज्यादातर लोग रिक्शे में नहीं बैठते हैं. हम सभी लोग अधिकारियों से मिलते हैं, तो सिर्फ हमें आश्वासन मिलता है. मिजान सिंह का कहना है कि अभी तो चुनाव हुए ही हैं, वह उम्मीद करते हैं कि मसूरी नगरपालिका के अध्यक्ष हमारे लिए कुछ करेंगे. सुनील टम्टा ने कहा कि वह 15 साल से रिक्शा चला रहे हैं. पहले इतने बुरे हाल नहीं थे लेकिन आज स्थिति खराब है. उस दौर में 500-600 रुपये प्रतिदिन कमा लिया करते थे, जिससे घर का खर्चा चल जाता था लेकिन आज लोग अपनी गाड़ी से आते हैं, तो दिनभर में 200-300 रुपये की ही कमाई हो पाती है. इतने कम पैसों में कोई कैसे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है.
Dehradun,Uttarakhand
February 26, 2025, 00:33 IST
