भारत या एशिया का कोई व्यक्ति क्यों नहीं बन पाता पोप? क्यों ना के बराबर अवसर

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Pope Francis still critical: पोप फ्रांसिस की गंभीर स्थिति के चलते चर्च के भावी नेतृत्व पर चर्चा हो रही है. 138 कार्डिनल्स में से 4 भारतीय हैं. यूरोप के पास सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है, जिससे एशिया का पोप बनने का …और पढ़ें

138 कार्डिनल्स में से 37 एशिया से हैं. यूरोप के पास सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है, जिससे एशिया का पोप बनने का अवसर कम है.
हाइलाइट्स
- पोप फ्रांसिस की हालत गंभीर बनी हुई है
- भारत के चार कार्डिनल मतदान में भाग लेंगे
- यूरोप के पास सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है
Pope Francis still critical: पोप फ्रांसिस गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं और फिलहाल उनका रोम के गेमेली अस्पताल में इलाज चल रहा है. कई दिनों तक सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें 14 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सोमवार को वेटिकन ने कहा कि पोप की हालत में मामूली सुधार हुआ है, लेकिन डॉक्टरों ने कहा है कि उनकी उम्र, कमजोरी और पहले से मौजूद फेफड़ों की बीमारी को देखते हुए उनकी हालत गंभीर बनी हुई है. इससे चर्च के भावी नेतृत्व और संभावित पोप सम्मेलन की तैयारियों के बारे में गहन चर्चाएं शुरू हो गई हैं. यदि सम्मेलन आयोजित किया जाता है तो 80 वर्ष से कम आयु के 138 कार्डिनल मतदान के पात्र होंगे, जिनमें भारत के चार कार्डिनल भी शामिल होंगे.
कब होता है पोप सम्मेलन
नया पोप तभी चुना जाता है जब पोप की मृत्यु हो जाती है या वह त्यागपत्र दे देता है. जैसे-जैसे पोप फ्रांसिस की सेहत नाजुक बनी हुई है, वेटिकन सभी संभावित परिदृश्यों के लिए तैयारियां कर रहा है. अगर पोप अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो जाते हैं, तो कार्डिनल पारोलिन के नेतृत्व में एक अवधि सुनिश्चित की जाएगी कि चर्च काम करता रहे. हालांकि नए पोप के चुने जाने तक कोई प्रमुख धार्मिक निर्णय नहीं लिया जाएगा. सदियों पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए सिस्टिन चैपल में पोप सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा.
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पोप के चुनाव की प्रक्रिया
मतदान करने वाले सभी कार्डिनल्स को बाहरी दुनिया से अलग होने से पहले गोपनीयता की शपथ लेनी होगी. कैथोलिक चर्च के नियमों के अनुसार, 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल ही पोप सम्मेलन में मतदान कर सकते हैं. कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स रिपोर्ट वेबसाइट के अनुसार, 252 कार्डिनल्स में से 138, 80 वर्ष से कम आयु के हैं और आगामी सम्मेलन में भाग लेने के पात्र हैं. पोप का चुनाव एक बड़ी प्रक्रिया के जरिए होता है. इसके लिए सबसे पहले कार्डिनल्स की सभा होती है. प्रत्येक कार्डिनल अपने पसंदीदा पोप के नाम को एक पेपर बैलट पर लिखते हैं. जीतने के लिए एक उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना होता है.
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इस तरह होती है नए पोप की घोषणा
वोटिंग दिन में कई बार हो सकती है, जब तक किसी को बहुमत नहीं मिलता. हर वोटिंग राउंड के बाद बैलेट्स को जलाया जाता है. मतदान के प्रत्येक दौर के बाद बैलेट जलाए जाते हैं. काले धुएं का मतलब है कि कोई निर्णय नहीं हुआ है, जबकि सफेद धुआं संकेत देता है कि एक नया पोप चुन लिया गया है. पोप का चुनाव आज भी पूरी तरह मैनुअल वोटिंग से होता है. वोटों को रिकॉर्ड करने और गिनने के लिए तीन कार्डिनल चुने जाते हैं. पांचवें चरण में नए पोप के नाम की घोषणा होती है. एक वरिष्ठ कार्डिनल सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी पर आकर ‘हाबेमुस पापम’ (हमारे पास एक पोप है) की घोषणा करता है. इसके बाद नया पोप बालकनी में आकर जनता को आशीर्वाद देता है.
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पोप के चुनाव पर वैश्विक प्रभाव
पोप के चुनाव के लिए होने वाले मतदान में वैसे तो भारतीय कार्डिनल्स भी भाग लेंगे, लेकिन कार्डिनल्स के कॉलेज में 120 से अधिक मतदाता होते हैं. ये दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं. यूरोप के पास सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है. इस कारण पोप के चयन में यूरोप सबसे अधिक प्रभावशाली बन जाता है. हालांकि लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों ने अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की है. उनका यह तर्क है कि इन क्षेत्रों में कैथोलिक धर्म सबसे तेजी से बढ़ रहा है. जहां तक एशिया की बात है तो गैर-पश्चिमी समाजों में ईसाई धर्म का विस्तार हो रहा है. ऐसे में एक ऐसे नेता को तलाशना होगा जो वैश्विक धार्मिक विविधता को समझता हो. साल 2013 में चुने गए पोप फ्रांसिस खुद लैटिन अमेरिका से चुने गए पहले पोप थे. यह चर्च नेतृत्व में विविधता की ओर एक बदलाव को दर्शाता है. भारत का करीब दो करोड़ कैथोलिक समुदाय इस चुनाव को उत्सुकता से देखेगा. ये समुदाय विशेष रूप से केरल में है.
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कौन होते हैं कार्डिनल्स
कार्डिनल्स कैथोलिक चर्च के उच्चतम रैंक वाले पादरी होते हैं, जो पोप के सबसे करीबी सलाहकार और चर्च के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन्हें अक्सर ‘चर्च के राजकुमार’ कहा जाता है. कई कार्डिनल वेटिकन के विभागों और आयोगों के प्रमुख होते हैं. ये विभाग चर्च के वैश्विक संचालन में मदद करते हैं. ये बड़े धार्मिक पर्वों और आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. महत्वपूर्ण वैश्विक चर्च सम्मेलनों में प्रतिनिधित्व करते हैं. पोप ही कार्डिनल्स को नियुक्त करते हैं. आमतौर पर वे पहले से ही आर्चबिशप या बिशप होते हैं. कार्डिनल बनने के बाद, उन्हें खास लाल रंग की टोपी (बिरेटा) दी जाती है, जो उनके बलिदान और निष्ठा का प्रतीक होती है. दुनियाभर में 230 कार्डिनल्स होते हैं.
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भारतीय कार्डिनल जो मतदान करेंगे
भारत में छह कार्डिनल हैं, लेकिन कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी (79) और ओसवाल्ड ग्रेसियस (80) जल्द ही बढ़ती उम्र की वजह से मतदान करने की पात्रता खो देंगे. 19 अप्रैल, 2025 के बाद एलेनचेरी भी मतदान नहीं कर पाएंगे. अगले पोप सम्मेलन में वोट देने वाले चारों कार्डिनल अलग-अलग पृष्ठभूमि से हैं और कैथोलिक चर्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
फिलिप नेरी फेराओ: 72 वर्षीय कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ, ईस्ट इंडीज के सातवें पैट्रिआर्क और गोवा और दमन के आर्कबिशप हैं. 28 अक्टूबर 1979 को उन्हें दीक्षा प्राप्त हुई. 10 अप्रैल 1994 को उन्हें धर्माध्यक्षीय दीक्षा प्राप्त हुई और 27 अगस्त 2022 को उन्हें कार्डिनल्स कॉलेज में पदोन्नत किया गया.
क्लेमिस बेसिलियोस: 64 वर्षीय कार्डिनल क्लेमिस बेसिलियोस, जिनका जन्म इसहाक थोट्टूमकल के रूप में हुआ था, त्रिवेन्द्रम के मेजर आर्कबिशप और सिरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च के मेजर आर्कबिशप-कैथोलिकोस हैं. 11 जून 1986 को पुरोहित पद पर नियुक्त होने के बाद, 15 अगस्त 2001 को उन्हें पादरी पद पर नियुक्त किया गया. 24 नवम्बर 2012 को उन्हें कार्डिनल्स कॉलेज में पदोन्नत किया गया.
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एंथनी पूला: 63 वर्षीय कार्डिनल एंथनी पूला भारत के पहले दलित कार्डिनल हैं. वे वंचित बच्चों की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. कार्डिनल्स कॉलेज में उनकी पदोन्नति को जाति-आधारित अन्याय को हल करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा गया है.
जॉर्ज जैकब कूवाकड: 51 वर्षीय कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवाकड एक कुशल वेटिकन राजनयिक और केरल के सिरो मालाबार आर्कबिशप हैं. जनवरी 2025 में अंतरधार्मिक संवाद के लिए डिकास्टरी के प्रीफेक्ट के रूप में नियुक्त होने से पहले उन्होंने पोप फ्रांसिस की विदेश यात्राओं का आयोजन किया था. 24 जुलाई 2004 को उन्हें पुरोहिताई की नियुक्ति मिली; 24 नवम्बर 2024 को उन्हें धर्माध्यक्षीय नियुक्ति मिली. 7 दिसम्बर 2024 को उन्हें कार्डिनल्स कॉलेज में पदोन्नत किया गया.
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क्यो नहीं बन सकता एशिया का पोप
अटकलें लगाई जा रही हैं कि पोप फ्रांसिस का उत्तराधिकारी अफ्रीका या एशिया से हो सकता है. वेटिकन के अनुसार, 2022 के अंत में लगभग 1.4 बिलियन की वैश्विक कैथोलिक आबादी में से 31 फीसदी इन दो महाद्वीपों में हैं. लेकिन ये आंकड़े महाद्वीपों के महत्व को कम करके आंकते हैं क्योंकि इनमें चीन शामिल नहीं है, जहां संभवतः अतिरिक्त 12 मिलियन कैथोलिक हैं. जहां तक वोटों की सवाल है तो एशिया से केवल 37 कार्डिनल आते हैं, जो कुल संख्या का 14.7 फीसदी हैं. अफ्रीका में तो ये संख्या और कम है, वहां 29 कार्डिनल हैं, जो 11.5 फीसदी बैठते हैं. भारत में केवल छह कार्डिनल हैं, जिनमें चार के पास मतदान का अधिकार होगा. यूरोपीय देश अकेले इटली के 17 कार्डिनल हैं.
New Delhi,Delhi
February 25, 2025, 17:30 IST
