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भारत की कुंडली पर चीन भारी, तरक्की में विघ्न डालने को पकड़ी वक्री चाल!

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चीन द्वारा मशीनी उपकरणों के निर्यात पर रोक भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नुकसान पहुंचा रही है. सरकार “चाइना प्लस वन” रणनीति और PLI योजनाओं के जरिए संकट से निपटने का प्रयास कर रही है. लेकिन ग्लोबल ट्रेड को लेकर बने तनाव और बढ़ते टैक्स…और पढ़ें

भारत की कुंडली के महत्वपूर्ण घर में बैठा चीन एक बार फिर से वक्री चाल चला है. उसका मकसद किसी भी तरह भारत की तरक्की में विघ्न डालना है. इस बार वह कुछ हद तक कामयाब होता भी नजर आ रहा है. भारत की प्रगति से चिढ़ा बैठा ड्रैगन अपनी ‘गंदी नीति’ पर उतर आया है. उसकी एक चाल से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर गंभीर चोट पड़ी है. चीन की नई एक्सपोर्ट पॉलिसी के चलते भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर संकट में है. इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) इंडस्ट्री इस पॉलिसी के कारण मुख्य तौर पर प्रभावित हुए हैं. इस पॉलिसी के तहत चीन ने जरूरी मशीनी उपकरणों का निर्यात लगभग बंद कर दिया है, जिससे कंपनियों को प्रोडक्शन में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को तेजी से बढ़ने के लिए आधुनिक मशीनी उपकरणों की ज़रूरत है. लेकिन चीन द्वारा महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्यात रोक दिए जाने से इस सेक्टर को भारी नुकसान हो रहा है. यह स्थिति विशेष रूप से उन उद्योगों के लिए घातक साबित हो रही है, जो पूरी तरह से चीन पर निर्भर हैं.

टारगेट पूरे करने में हो रही दिक्कत
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, फॉक्सकॉन जैसी कंपनियां उपकरणों की कमी के कारण अपने प्रोडक्शन टारगेट पूरे कर पाने में असमर्थ हो रही हैं. ऐसी कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो मैन्युफैक्चरिंग में लगी हैं. सोलर पैनल इंडस्ट्री पहले से ही आपूर्ति संकट का सामना कर रहा थी, लेकिन अब स्थिति और अधिक गंभीर हो गई है.

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन सरकार ने जानबूझकर “कैपिटल इक्विपमेंट” (वित्तीय उपकरण) का निर्यात रोक दिया है. इसका असर यह हो रहा है कि भारतीय कंपनियों के लिए उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और मांग के अनुसार उत्पादन करना मुश्किल हो गया है. इसके अलावा, इन कंपनियों के ऑपरेशनल खर्च भी बढ़ गए हैं.

चीन ने क्यों रोका मशीनी उपकरणों का निर्यात
चीन की इस नीति को बदलते ग्लोबल ट्रेड रिलेशन्स का परिणाम माना जा रहा है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ बढ़ते तनाव के कारण चीन ने यह कदम उठाया है. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी चीन समेत कई देशों पर नए टैक्स रेट और प्रतिबंधों की बात कही है.

यूरोपीय संघ ने चीन की वाहन निर्माता कंपनी SAIC मोटर पर 35.3 प्रतिशत का भारी शुल्क लगाया है. यह कदम चीन को वैश्विक व्यापार मंच पर और अधिक अलग-थलग कर सकता है. इसी बीच, भारत ने चीन से निवेश पर लगाए गए प्रतिबंधों को हाल ही में ढीला किया था. लेकिन चीन की नई नीति ने इन प्रयासों को कमजोर कर दिया है.

चाइना प्लस वन के परेशान है चीन
इस चुनौती से निपटने के लिए भारतीय सरकार “चाइना प्लस वन” रणनीति को बढ़ावा दे रही है. इस रणनीति के तहत कंपनियां अपनी उत्पादन यूनिट्स चीन के अलावा अन्य देशों में स्थापित कर रही हैं. वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने भारत को इस अवसर का लाभ उठाने की सलाह दी है.

भारत की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम ने स्मार्टफोन सेक्टर में अच्छी-खासी प्रगति की है. ऐपल, फॉक्सकॉन और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कंपनियां अब भारत में अपने उत्पादन का विस्तार कर रही हैं, जिससे यह साफ हो गया है कि भारत मैन्युफैक्चरिंग का एक प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

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