पुतिन के पास आकर रूस को चीन से दूर करेंगे ट्रंप, क्या है 'रिवर्स निक्सन' प्लान
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Donald Trump News: डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिका की विदेश नीति में आमूलचूल बदलाव के संकेत दिए हैं. जियोपॉलिटिक्स एक्सपर्ट ट्रंप की रणनीति को ‘रिवर्स निक्सन’ बता रहे हैं, जिसके…और पढ़ें
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क्या ‘रिवर्स निक्सन’ करके चीन और रूस को अलग कर पाएंगे ट्रंप?
हाइलाइट्स
- ट्रंप की ‘रिवर्स निक्सन’ नीति से चीन चिंतित.
- अमेरिका-रूस नजदीकी से चीन अलग-थलग हो सकता है.
- ट्रंप की योजना से चीन को कूटनीतिक नुकसान.
वाशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर बयान दे रहे हैं. ट्रंप के बयानों का मकसद सिर्फ युद्ध खत्म करना नहीं है, बल्कि वे एक बड़े रणनीतिक खेल का हिस्सा है. ट्रंप की इस योजना को ‘रिवर्स निक्सन’ कहा जा रहा है. यह वही रणनीति है, जिसका इस्तेमाल 1970 के दशक में अमेरिका ने सोवियत संघ को कमजोर करने के लिए किया था. ट्रंप प्रशासन रूस के करीब जाने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका के इस कदम ने न केवल यूरोपीय सहयोगियों को चिंतित कर दिया है, बल्कि चीन में भी हलचल मचा दी है. चीन और रूस के बीच की बढ़ती साझेदारी को कमजोर करने की ट्रंप की कोशिशें यह दिखाती हैं कि वाशिंगटन अब चीन को सबसे बड़ा खतरा मान रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि अगर ट्रंप अपने इस मिशन में आंशिक रूप से भी सफल होते हैं, तो यह चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक हार होगी.
चीन ने सार्वजनिक रूप से अमेरिका-रूस शांति वार्ता का समर्थन किया है, लेकिन अंदर ही अंदर बीजिंग की धुकधुकी बढ़ी हुई है. चीनी अधिकारियों को डर है कि अमेरिका और रूस की नजदीकी चीन को वैश्विक राजनीति में अलग-थलग कर सकती है. चीनी विदेश नीति के विशेषज्ञ यू बिन ने CNN को बताया, ‘अगर अमेरिका और रूस एक हो जाते हैं, तो ट्रंप प्रशासन अपनी पूरी ताकत चीन पर केंद्रित कर सकता है.’
क्या है ‘रिवर्स निक्सन’?
कई एक्सपर्ट्स ने ट्रंप की इस रणनीति को ‘रिवर्स निक्सन’ कहा है. यह रणनीति 1970 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन द्वारा अपनाई गई नीति का उलटा संस्करण मानी जा रही है. 1972 में, निक्सन ने चीन का ऐतिहासिक दौरा किया. इसका उद्देश्य था चीन को सोवियत संघ (USSR) से अलग करना और शीत युद्ध के दौरान अमेरिका को एक कूटनीतिक बढ़त दिलाना. यह रणनीति सफल रही और चीन-अमेरिका संबंध बेहतर हुए, जिससे सोवियत संघ अलग-थलग पड़ गया. अब ट्रंप इसका उल्टा यानी रूस के करीब जाकर चीन को अलग करना चाहते हैं.
चीन के लिए क्यों खतरा बन सकती है यह रणनीति?
बीजिंग और मॉस्को का रिश्ता पिछले कुछ सालों में मजबूत हुआ है. रूस, चीन के लिए ऊर्जा का बड़ा स्रोत है और दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग भी बढ़ा है. लेकिन ट्रंप की ‘रिवर्स निक्सन’ नीति इन संबंधों को प्रभावित कर सकती है. अगर अमेरिका रूस को चीन से अलग करने में सफल हो जाता है, तो चीन न केवल भू-राजनीतिक रूप से कमजोर हो जाएगा, बल्कि उसे पश्चिमी देशों से और ज्यादा दबाव का सामना करना पड़ेगा.
चीन को हो सकता है बड़ा नुकसान
अमेरिका का फोकस पूरी तरह चीन पर होगा: अगर रूस और अमेरिका के बीच शांति समझौता हो जाता है, तो अमेरिका अपनी सारी ऊर्जा चीन को रोकने में लगा सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान चीन ने रूस का समर्थन किया, जिससे यूरोपीय देशों में चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा. अगर रूस पश्चिमी देशों के करीब आता है, तो चीन और अलग-थलग पड़ सकता है. चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है. अगर रूस अमेरिका की तरफ झुकता है, तो चीन के लिए सस्ते तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हो सकती है.
क्या रूस और अमेरिका सच में ‘दोस्त’ बनेंगे?
रूस के लिए चीन एक अहम सहयोगी रहा है. आर्थिक प्रतिबंधों के कारण रूस को चीन की जरूरत है. ऐसे में रूस अमेरिका के साथ कितनी दूर तक जाएगा, यह देखने वाली बात होगी. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन के लिए चीन के साथ ‘छोटे भाई’ की भूमिका निभाना मुश्किल हो सकता है. अगर अमेरिका रूस को एक बेहतर सौदा ऑफर करता है, तो पुतिन बीजिंग से थोड़ी दूरी बना सकते हैं.
ट्रंप का प्लान कितना सफल होगा?
कई एक्सपर्ट्स को शक है कि ट्रंप रूस और चीन के बीच दरार डालने में पूरी तरह सफल होंगे. रूस और चीन की साझेदारी केवल रणनीतिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत है. चीन रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रूस को चीन की जरूरत बनी रहेगी.
February 21, 2025, 23:29 IST
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