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पहले ट्रंप के शपथ से संदेश, अब क्वाड में दिखाई भारत की ताकत, गजब कर रहे जयशंकर

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EAM S jaishankar News: अमेरिका में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर छाए हुए हैं. पहले तो डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण में भारत की धमक दिखी. उसके ठीक एक दिन बाद जब क्वाड देशों की मीटिंग हुई, तब भारत का ही एजेंडा छाय…और पढ़ें

पहले ट्रंप के शपथ से संदेश, अब क्वाड में दिखाई भारत की ताकत, गजब कर रहे जयशंकर

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई.

वाशिंगटन: अमेरिका में चार साल बाद डोनाल्ड ट्रंप की वापसी हो चुकी है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अभी अमेरिका में हैं. ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई. क्वाड में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका शामिल हैं. ट्रंप के पहले कार्यकाल में ही क्वाड की पहल हुई थी. बाइडन के कार्यकाल में यह परवान चढ़ा. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा कार्यकाल संभालने के बाद से चारों देशों के विदेश मंत्रियों की मंगलवार को यह पहली बैठक थी. ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं. क्वाड की अगली बैठक भारत में होने वाली है. इस बैठक से चीन को सांकेतिक तौर पर तीखा संदेश दिया गया.

दरअसल, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस क्वाड बैठक की मेजबानी की. अपने कार्यकाल के पहले ही दिन रुबियो ने यह जिम्मेदारी संभाली. भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिमाग लगाया. इसका असर हुआ कि मीटिंग से ही चीन को रगड़ा गया. इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया. बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है. यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है. क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं.

विदेश मंत्री ने क्या कहा?
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की. पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया. ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई. इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है. हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई. इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है. आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे.’

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क्वाड से चीन को कड़ा संदेश
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिकाने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई. जानकारों का कहना है कि बैठक का मकसद यह संकेत देना था कि बीजिंग का मुकाबला करना डोनाल्ड ट्रंप की प्राथमिकता है, जिन्होंने सोमवार को अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया है. रुबियो ने पहले कहा था कि वह बैठक के दौरान सहयोगियों के साथ काम करने के महत्व पर जोर देंगे. उन्होंने कहा था कि वे उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो अमेरिका और अमेरिकियों के लिए महत्वपूर्ण हैं.

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अमेरिका में दिखी भारत की अहमयित
बैठक से पहले स्टेट डिपार्टमेंट में रुबियो ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, ऑस्ट्रेलिया की पेनी वोंग और जापान के ताकेशी इवाया के साथ अपने देशों के झंडे के सामने तस्वीर खिंचवाई. संयुक्त बयान में कहा गया कि चारों देशों ने एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को मजबूत करने की अपनी साझा प्रतिबद्धता दोहराई, जहां कानून का शासन, लोकतांत्रिक मूल्य, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखा जाता है और उनका बचाव किया जाता है. अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की.

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शपथ में पहली पंक्ति में थे जयशंकर
इससे पहले एस जयशंकर ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में पहली पंक्ति में बैठे नजर आए थे. यहां जानना जरूरी है कि क्वाड ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका का एक अनौपचारिक समूह है. यह (क्वाड) पहले कार्यकाल में ट्रंप प्रशासन की पहल थी. बाइडन प्रशासन ने इसे नेतृत्व स्तर तक बढ़ा दिया. पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन के दौरान क्वाड समूह की कई बार बैठक हुई थी. इन बैठकों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की सैन्य और आर्थिक गतिविधियों को काउंटर करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था. खास तौर पर दक्षिण चीन सागर में, जहां अमेरिकी सहयोगियों ने बीजिंग के क्षेत्रीय दावों का विरोध किया है.

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