डेमचॉक के 37 परिवार मानसरोवर यात्रा शुरू होने का कर रहे इंतजार, जानिए क्यों?

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DEMCHOK MANSAROVAR ROUTE: डेमचॉक के रास्ते मानसरोवर की यात्रा कब शुरू हो सकती है इसका जवाब तो सिर्फ भारत और चीन के पास ही मौजूद है.लेकिन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से लिपुलेख रूट के जरिए मानसरोवर की यात्रा पूरी होन…और पढ़ें

क्या कभी डेमचॉक से कैलाश तक का पारंपरिक रूट खुलेगा?
हाइलाइट्स
- डेमचॉक रूट से मानसरोवर यात्रा 1962 से बंद है.
- डेमचॉक के 37 परिवार यात्रा शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं.
- यात्रा शुरू होने से डेमचॉक के हालात सुधर सकते हैं.
LADAKH: मानसरोवर यात्रा दो रूट के जरिए आयोजित होती है. पहला है उत्तराखंड के लिपुलेख पास और सिक्किम के नाथुला पास.क्या आपको पता है एक तीसरा रूट भी है. यह रूट लद्दाख से होकर जाता है. सबसे सुरक्षित और कम समय में इस रूट से कैलाश परिक्रमा की जा सकती है. फिलहाल अब यह संभव नहीं है. यह रूट कैलाश मानसरोवर और व्यापार का पारंपरिक रूट रहा है. 1962 की जंग के बाद से ही यह रूट बंद है. इस रूट की बात करे तो लेह से कैलाश पर्वत तक की दूरी 630 किलोमीटर के करीब है. दो से तीन दिन के भीतर यात्रा पूरी की जा सकती है. डेमचॉक रूट को यात्रा और व्यापार के लिए खोलने के लिए लद्दाख के निवासी खास तौर पर डेमचॉक के निवासी कई बार गुजारिश कर चुके हैं.
अगर यात्रा शुरू हुई तो सुधरेंगे हालात
लद्दाख के डेमचॉक का इलाका LAC विवाद के चलते हमेशा से संवेदनशील रहा है. डेमचॉक के काउंसलर इशे त्सागा (ISHEY TSAGA) ने वहां की मौजूदा स्थिती के बारे में कहा कि यहां 37 परिवार रहते है. कुल जनसंख्या 100 के करीब है. इनमें से 10 से 12 परिवार चरवाहे हैं जबकि बाकी में से कुछ खेती, पोर्टर, टूरिस्टों के लिए होम स्टे से अपनी आजीविका चलाते है. इशे त्सागा कई बार प्रतिनिधिमंडल के साथ उपराज्यपाल से मुलाकात की. डेमचॉक के जरिए यात्रा फिर से शुरू कराने का ज्ञापन भी सैंपा है. डेमचॉक के काउंसलर इशे त्सागा का कहना है कि यहां से लोगों का पलायन काफी समय ही हो गया था. दशकों पहले डेमचॉक के ज्यादातर परिवार लेह जाकर बस गए है. वजह थी कि यहां पर ना तो कोई काम धंधा था, चिकित्सा कि व्यवस्था, ना स्कूल यहां तक की सड़कों का तो नामो निशान तक नहीं था. अब हालातों में सुधार है सड़क तो 2020 के बाद से बड़ी तेजी से सड़के बनी है. यात्रा भी अगर शुरू हो गई तो यहां के लोगों के जीवन में और सुधार आएगा. जो लोग डेमचॉक छोड़कर चले गए थे वह भी वापस लौटने शुरू हो जाएंगे.
एतिहासिक है डेमचॉक रूट
लद्दाख का डेमचॉक से कैलाश मानसरोवर जाने का परंपरागत और छोटा रूट रहा है. तिब्बत पर जबरन कब्जा करने के बाद 1954 में भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ. इसे ‘पंचशील समझौता’ के नाम से जाना जाता है. लेकिन अप्रैल 1962 के बाद से यह समझौता आगे ही नहीं बढ़ा सका. इस समझौते में भारत का तिब्बत के साथ व्यापार और तीर्थयात्रा के लिए कुछ दर्रे चिंहित किए गए थे. इसमें उत्तराखंड में माना पास (दर्रा), नीति पास, धारमा पास और लिपुलेख पास, कुंगरी बिंगरी पास जिसे बाराहोती भी कहा जाता था उसेमें शामिल थे. इसके अलावा लद्दाख के पारंपरिक रास्ते जो सिंधु नदी की घाटी के साथ डेमेचॉक से ताशिगोंग तक जाता है. उसका इस्तमाल करना भी शामिल था. ताशिगोंग डेमचॉक की दूसरी ओर तिब्बत का पहला गांव है. यह वही रूट है जिसके जरिए डोगरा साम्राज्य के जनरल जोरावर सिंह ने कैलाश मानसरोवर तक के इलाके में कब्जा किया था.
दशकों पुराना है डेमचॉक विवाद
डेमचॉक भारत और चीन LAC का वह इलाका है जहां सेना के बीच लंबे वक्त तक गतिरोध बना रहा. साल 2020 के बाद से तो इस इलाके में सेना की गश्त और चरवाहों को अपने पुशुओं को ले जाने पर भी पाबंदी थी. पिछले साल पीएम मोदी और शी जिंपिंग के बीच कजान में वार्ता से ठीक पहले तनाव को कम करने का एलान हुआ. बंद हुई गश्त की फिर से बहाली हुई, तो चरवाहें अपने पशुओं को भी चराने की मंजूरी मिल गई. लेकिन इस पारंपरिक रूट को क्या फिर से आवाजाही के लिए खोला जाएगा यह कहना मुश्किल है. चीन की नजर डेमचॉक को लेकर हमेशा से ही खराब रही है. इलाके में तनाव जरूर कम हुआ हो विवाद अब भी बना ही हुआ है.
