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चैती छठ : मुगलसराय के इस तालाब पर आस्था का सैलाब, सूर्य को दी गई ये चीज

चंदौली. प्रदेश भर में चैती छठ पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. चंदौली जिले के मुगलसराय स्थित मानसरोवर तालाब पर छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाओं ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया. महिलाएं फल, फूल और चुनरी लेकर तालाब किनारे पहुंचीं. चैती छठ महिलाएं परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. सूर्यास्त के समय नदी और तालाब में खड़ी होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं. अलीनगर के मानसरोवर तालाब पर पूजा कर रहीं पूनम देवी ने बताया कि 4 दिन का ये व्रत सबसे कठिन माना जाता है. पूनम के अनुसार, बिहार और पूर्वी यूपी में छठ पूजा का विशेष महत्त्व है. ये पूजा पति, बच्चों और पूरे परिवार की मंगल कामना के लिए की जाती है.

नेपाल तक में धूम

घाट पर आईं सुषमा देवी ने बताया कि छठ पूजा के व्रत से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. महिलाएं सूर्य भगवान से परिवार की सुख-समृद्धि और सलामती की प्रार्थना करती हैं. पूरा परिवार श्रद्धा और उत्साह के साथ इस पर्व में शामिल होता है. इस पर्व को सबसे कठिन माना जाता है. उपवास रखने वाले भक्त 36 घंटे निर्जला व्रत रखते हैं. ये महापर्व खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्से में धूमधाम से मनाया जाता है.

मिलती है सुख-शांति

किसी भी पर्व त्यौहार में उगते हुए सूर्य देव की ही पूजा अर्चना की जाती है, लेकिन छठ पूजा इसलिए भी खास है, क्योंकि यहां उगते और डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. मान्यता ऐसी है कि सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने से जीवन में चल रही सभी कठिनाइयां दूर होती हैं. सूर्य देव और छठी मां की कृपा से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है. पौराणिक ग्रंथों में भी छठ का उल्लेख पाया जाता है.

साल भर में दो बार 

छठ पूजा साल में 2 बार मनाई जाती है, जिसे चैती छठ पूजा और कार्तिक छठ पूजा के नाम से जाना जाता है. चैती छठ पूजा चैत्र महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्टी और सप्तमी तिथि को मनाई जाती है. कार्तिक छठ पूजा दिवाली के 6 दिन बाद कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्टी और सप्तमी तिथि को मनाई जाती है. चैती छठ से ज्यादा कार्तिक महीने में पड़ने वाले छठ के बारे में लोग जानते हैं. चैती छठ के बारे में कम ही लोग जानते हैं.

चैती छठ का महत्त्व

ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना का पहला दिन चैत्र नवरात्रि का पहला दिन था. इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी. उस समय चारों तरफ अंधकार और जल ही जल था. ऐसे में भगवान विष्णु की आंख खुलते ही सूर्य और चंद्रमा की रचना हुई और ब्राह्मणी शक्ति से योग माया का जन्म हुआ. पौराणिक कथाओं के अनुसार, योग माया जी ने सूर्य की पहली किरण को उत्पन्न किया, जिसे देवसेना माता कहा जाता है. इसी कारण देवसेना माता और सूर्य देव को भाई-बहन भी माना गया है. सृष्टि के छठवें दिन संसार को प्रकाश और ऊर्जा की प्राप्ति हुई, इसलिए सृष्टि देवी और सूर्य देव की आराधना के लिए छठ पर्व मनाया जाता है. इस दिन देवसेना माता ही षष्टी देवी के रूप में पूजी जाती हैं, जिन्हें छठी मैया भी कहा जाता है.

बीमारियां होती हैं ठीक

चैती छठ पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक गर्मी और प्रकाश प्रदान करने के लिए सूर्य को धन्यवाद देने का एक तरीका माना गया है. मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से कई तरह की बीमारियां ठीक हो जाती हैं. व्रती नदी या तालाब के किनारे दूध, जल और गन्ने का रस लेकर अर्घ्य देते हैं. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फल भोग के तौर पर अर्पित किए जाते हैं.

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