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गोंडी भाषा के अस्तित्व की लड़ाई! इस महिला ने बचाने की ली जिम्मेदारी

Agency:News18 Madhya Pradesh

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बालाघाट की चम्मी मेरावी गोंडी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए प्रयासरत हैं. आधुनिकता के प्रभाव से यह विलुप्ति की कगार पर है, जिसे संरक्षित करने के लिए उन्होंने गोंडी भाषा की कक्षाएं शुरू की हैं. उनकी इस पहल से…और पढ़ें

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गोंडी

गोंडी क्लास लेने वाली चम्मी मेरावी।

हाइलाइट्स

  • बालाघाट की चम्मी मेरावी गोंडी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए प्रयासरत हैं.
  • इसे संरक्षित करने के लिए उन्होंने गोंडी भाषा की कक्षाएं शुरू की हैं.
  • उनकी इस पहल से नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा और परंपरा से जुड़ रही हैं.

बालाघाट: मध्य प्रदेश में लगभग 22 प्रतिशत आबादी जनजातीय समुदाय से आती है. वहीं, बालाघाट भी एक आदिवासी बहुल जिला है. यहां पर प्रमुख रूप से गोंड आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं. कभी इस इलाके में गोंडी भाषा और संस्कृति का बोलबाला था, लेकिन आधुनिकता के प्रभाव के चलते यह धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही है.

ऐसे में इसे बचाने के लिए कुछ लोग कुछ कोशिशें कर रहे है. इन्हीं में से मलाजखंड की रहने वाली चम्मी मेरावी एक है. उन्होंने इस बोली को जिंदा रखने के लिए गोंडी क्लॉस शुरू की है.

बालाघाट में कई इलाकों बोली जाती है गोंडी भाषा
बालाघाट जिले में ज्यादातर इलाके में गोंड आदिवासी रहते हैं. ऐसे में यहां के पर कई इलाकों में गोंडी बोली जाती है. इसमें बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी, लांजी, किरनापुर और दूसरे इलाके में गोंडी बोली बोली जाती है. इसमें खास तौर से बैहर, मलाजखंड उकवा परसवाड़ा और लामता में अब भी ज्यादातर लोग गोंडी बोली बोली जाती है.

अलग- अलग इलाकों में बदल जाता है भाषा
मलाजखंड की रहने वाली चम्मी मेरावी ने बताया कि गोंडी बोली हर इलाके में अलग- अलग तरह से बोली जाती है. जैसे कि महाराष्ट्र से सटे इलाकों में बोली फरक आ जाता है. वहीं, छत्तीसगढ़ से सटे इलाकों में अलग ढंग से इस बोली को बोला जाता है. वहीं, मंडला से सटे इलाकों में अलग तरीके से इस बोली को बोला जाता है. वहीं, लामता, परसवाड़ा, बैहर के क्षेत्रों में बोली में फर्क आ जाता है.

बीते कुछ सालों में लोगों से छूट रही बोली
गोंडी बोली पढ़ाने वाली चम्मी मेरावी बताती है कि बीते कुछ सालों में बोली की लोकप्रियता में कमी आई है. खास तौर से युवा वर्ग इससे दूर होता जा रहा है. ऐसे में एक एहसास हुआ की बोली को बचाना है तो इस तरह कक्षाएं शुरू करनी चाहिए. क्योंकि किसी भी संस्कृति का अस्तित्व उसकी बोली से होता है. ऐसे में गोंडी संस्कृति को बचाना है, तो बोली को भी बचाना होगा.

क्लॉस में आते हैं छोटे से लेकर बड़े तक सब 
चम्मी मेरावी बताती है कि अब लोगों की दिलचस्पी गोंडी बोली सीखने में बढ़ रही है. ऐसे में लोग अब क्लास आते हैं. वहीं, इसमें छोटे बच्चों से लेकर बड़ो तक इसे सीखने में दिलचस्पी दिखा रहे है.

चम्मी मेरावी ने दी प्रतिक्रिया
चम्मी मेरावी ने बताया कि इस बोली के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार को भी कोशिश करनी चाहिए. इसके लिए इसे संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए. साथ ही इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए. साथ ही विशेष भाषा का दर्जा मिलना चाहिए. इससे गोंडी बोली और संस्कृति का अस्तित्व बचा रहेगा.

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