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खत्म होने की कगार पर 50 साल पुराना यह काम, कारीगरों के सामने भुखमरी के हालात!

Agency:News18 Uttar Pradesh

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Saharanpur News: सहारनपुर में पिछले 50 साल से बांस और सरवे से विभिन्न चीजों को हाथ के कारीगर कुर्सी, चटाई, मेज बना रहे हैं. लेकिन लगभग 5 साल से उनका काम लगातार घटता जा रहा है. कारीगरों को अपना घर चलाने के लिए क…और पढ़ें

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50 साल से करते आ रहे हाथ की कारागारी लेकिन अब परिवार चलाने के लिए पढ़ रहे लाले

अंकुर सैनी/सहारनपुर: हमारे बड़े बुजुर्ग पहले बांस और सरवे से तैयार कुर्सी व चटाई इत्यादि का इस्तेमाल किया करते थे. जिससे एक और हाथ के कारीगरों को रोजगार मिलता था, तो वहीं दूसरी ओर टूट जाने पर उसकी लकड़ी का अन्य चीजों में इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे बढ़ती प्लास्टिक और लकड़ी के फर्नीचर की डिमांड के चलते हाथ की कारीगरी खत्म होती जा रही है. सहारनपुर में पिछले 50 साल से बांस और सरवे से विभिन्न चीजों को हाथ के कारीगर कुर्सी, चटाई, मेज बना रहे हैं. लेकिन लगभग 5 साल से उनका काम लगातार घटता जा रहा है. कारीगरों को अपना घर चलाने के लिए कुछ और काम करना पड़ रहा है. जिस कारण पुरानी हाथ की कारीगरी खत्म होनी की कगार पर पहुंच रही है. जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाथ के दस्तकारों के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन सहारनपुर का यह कारोबार धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है.

हाथ के कारीगर 50 साल पुराना काम छोड़कर कुछ और काम करने को मजबूर

बांस की लकड़ी से कारीगरी करने वाले समीर ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि उनके बड़े बुजुर्ग लगभग 50 साल पहले से बांस व सरवे की लकड़ी से विभिन्न प्रकार की छाज, कुर्सियां, चटाई बनाते चले आ रहे हैं, उसी काम को अब वह कर रहे हैं. यहां पर बनने वाली चटाई, कुर्सियां और छाज कई जनपदों तक सप्लाई किया जाता था लेकिन अब लकड़ी और प्लास्टिक के सामान ने बांस और सरवे से तैयार चटाई, कुर्सियां और छाज के काम को बंदी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. जबकि मेहनत की बात की जाए तो इसको बनाने के लिए कई घंटे लगते हैं. तैयार होने के बाद इसको स्क्वायर फीट के हिसाब से बेचा जाता है एक साइड कपड़ा लगाकर ₹25 स्क्वायर फीट वही दोनों और कपड़ा लगाकर ₹35 स्क्वायर फीट के हिसाब से चटाई बेची जाती है. वही छाज बनाने वाली राजवती बताती है कि एक तरफ सरकार हाथ के दस्तकारों को सुविधा देने की बात कर रही है लेकिन उनका 50 साल पुराना यह काम अब बंद होने के कगार पर पहुंच गया है. अब उनके हाथ के हुनर की कदर नहीं रही अपने पेट को काट-काट कर वह अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं लेकिन उनको किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दी जा रही. यही कारण है कि इस काम को करने वाले काफी लोग इस काम को छोड़कर कुछ और काम करने लगे हैं.

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