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इस मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति,फिर भी हर दिन होती है पूजा! क्या है इसका रहस्य

Agency:Local18

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Surat Idol Less Temple: सूरत में एक अनोखा मंदिर है जहां कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन श्रद्धालु पूजा करने आते हैं. इस मंदिर में आस्तिक मुनि की समाधि है. बता दें कि यहां पूजा विधियों और आस्था के साथ भक्त अपनी मनोकाम…और पढ़ें

इस मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति,फिर भी हर दिन होती है पूजा! क्या है इसका रहस्य

सूरत का आसपाल दादा मंदिर

सूरत: गुजरात के सूरत शहर में एक ऐसा मंदिर है, जहां कोई मूर्ति नहीं है, फिर भी यहां पूजा-अर्चना होती है. यह मंदिर हजीरा इलाके में स्थित है और ‘आसपाल दादा का मंदिर’ के नाम से जाना जाता है. यहां किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं, बल्कि आसपाल दादा और उनके शिष्य की समाधि है. मंदिर में हर दिन पूजा होती है और श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने की आस्था के साथ यहां आते हैं. पुजारी के अनुसार, यह मंदिर लगभग 350 से 400 साल पुराना है.

आसपाल दादा की पूजा
बता दें कि मंदिर में कोई मूर्ति न होने के बावजूद, पुजारी धार्मिक विधियों का पालन करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं. भक्त अपनी मान्यताओं के अनुसार यहां आकर आसपाल दादा और उनके शिष्य की समाधि की पूजा करते हैं. मंदिर का शांतिपूर्ण वातावरण और भक्तिभाव से भरी आस्था श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. यह स्थान एक मजबूत आस्थापूर्ण केंद्र बन चुका है, जहां लोग दूर-दूर से आकर अपने जीवन की समस्याओं का समाधान प्राप्त करने की कोशिश करते हैं.

मंदिर से जुड़ी रोचक कहानी
बता दें कि आसपाल दादा के मंदिर से जुड़ी एक रोचक लोककथा है. इस मंदिर का स्थान पहले एक कंपनी के परिसर में था. जब मंदिर को हटाने की कोशिश की गई, तो दीवार तोड़ते वक्त हजारों सांप दिखे. इसके बाद मंदिर की जगह छोड़ दी गई और कंपनी का निर्माण कार्य जारी रखा गया. इस घटना के बाद मंदिर के प्रति श्रद्धा और विश्वास और भी बढ़ गया. हर साल नाग पंचमी के दिन यहां सर्पयज्ञ का आयोजन किया जाता है.

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महिलाओं के लिए विशेष मान्यता
मंदिर के 75 वर्षीय पुजारी प्रेमाभाई पटेल ने “लोकल 18” से बातचीत में बताया कि इस मंदिर की पूजा में विशेष रूप से महिलाओं का विश्वास है, खासकर वे महिलाएं जो संतान प्राप्ति के लिए परेशान रहती हैं. भक्तों का मानना है कि आसपाल दादा के आशीर्वाद से संतान का जन्म होता है. संतान होने के बाद महिलाएं मंदिर में आकर धन्यवाद अर्पित करती हैं. यह मंदिर अब एक आस्थापूर्ण और विश्वास का प्रतीक बन चुका है.

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