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इस किसान ने ईजाद की गेहूं की नई किस्म, जो हर मौसम में देती है तगड़ी पैदावार!

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उत्तराखंड के किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने ‘नरेंद्र 09’ नामक गेहूं की नई किस्म विकसित की है, जो तीन गुना अधिक उत्पादन देती है और हर मौसम में फलती है. इसे जैविक पद्धति से भी उगाया जा सकता है.

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नरेंद्र सिंह मेहरा ने विकसित की गेहूं की नई किस्म ‘नरेंद्र 09’

हाइलाइट्स

  • नरेंद्र सिंह मेहरा ने ‘नरेंद्र 09’ गेहूं की नई किस्म विकसित की.
  • ‘नरेंद्र 09’ हर मौसम में फलती और तीन गुना अधिक उत्पादन देती है.
  • यह किस्म कम पानी में अच्छी पैदावार देती है और जैविक रूप से उगाई जा सकती है.

नैनीताल: उत्तराखंड के किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने खेती के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया है. उन्होंने ‘नरेंद्र 09’ नामक एक नई गेहूं की किस्म विकसित की है, जो न केवल तीन गुना अधिक उत्पादन देती है, बल्कि हर मौसम में फलती-फूलती है. यह किस्म कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में उगाई जा सकती है.
साल 1959 में नैनीताल जिले के देवला मल्ला गांव में जन्मे नरेंद्र सिंह मेहरा का खेती से बचपन से ही गहरा लगाव था. हालांकि, उन्होंने भूगोल में स्नातक और पर्यटन में डिप्लोमा किया, लेकिन खेती के प्रति उनका प्रेम उन्हें अपनी जड़ों की ओर वापस खींच लाया. इसके बाद उन्होंने अपने खेतों में इनोवेटिव फार्मिंग की शुरुआत की. नरेंद्र अन्य किसानों को भी इस तरह खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

कैसे हुई नरेंद्र 09 की खोज 
साल 2008 में, जब हल्द्वानी और आसपास के किसान टमाटर की खेती कर रहे थे, तब मेहरा गेहूं की खेती कर रहे थे. उन्होंने देखा कि गेहूं का एक पौधा बाकी पौधों से अलग दिख रहा था. उसकी बालियां ज्यादा स्वस्थ और भरी-भरी थीं. उन्होंने इस पौधे को लाल धागे से चिन्हित किया और आने वाले वर्षों में इससे बीज एकत्र कर खेती जारी रखी. लगातार प्रयासों और प्रयोगों के बाद, उन्होंने एक अनोखी गेहूं की किस्म विकसित की, जो पारंपरिक गेहूं की तुलना में अधिक उपज देती है. इस किस्म को वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय भेजा गया, जहां इसे अनुकूल पाया गया.

नरेंद्र 09 गेहूं की विशेषताएं
नरेंद्र 09 गेहूं की यह किस्म पहाड़ों, मैदानी इलाकों और सूखे क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. नरेंद्र बताते हैं कि इस गेहूं के पौधे काफी मजबूत होते हैं, जो हवा से आसानी से नहीं टूटते हैं. इस गेहूं में प्रति बाली 50-80 दाने होते हैं, जबकि पारंपरिक गेहूं में केवल 20-25 होते हैं. इसका उत्पादन प्रति एकड़ 2,800-2,900 किलोग्राम तक पहुंच सकता है. इसे जैविक पद्धति से भी उगाया जा सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है.

जैविक खेती की ओर बढ़ता कदम
मेहरा सिर्फ गेहूं की नई किस्म विकसित करने तक सीमित नहीं रहे. उन्होंने रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को समझा और धीरे-धीरे जैविक खेती को अपनाया. आज वे उत्तराखंड के छोटे किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिससे उनकी लागत कम हो रही है और मिट्टी की गुणवत्ता बनी हुई है। मेहरा की इस उपलब्धि को पौधा किस्म एवं किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम (PPV & FRA) के तहत पेटेंट भी मिल चुका है. क्षेत्र के अन्य किसान भी उनकी पद्धति को अपनाकर लाभ कमा रहे हैं. उत्तराखंड के किसान अब ‘नरेंद्र 09’ की बदौलत अपनी उपज बढ़ाने और जैविक खेती को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
मेहरा का यह योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है कि मेहनत और लगन से कोई भी किसान बदलाव ला सकता है.

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