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यहां होली पर क्यों उमड़ पड़ते हैं आंसू? इस समाज की परंपरा जान हो जाएंगे भावुक!

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Holi Special 2025: खंडवा के नागर ब्राह्मण समाज ने होली पर अनोखी परंपरा शुरू की है. हर साल होलिका दहन के दिन, दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. यह पहल समाज की एकजुटता को मजबूत करती है और शोकग्रस्त…और पढ़ें

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नागर

नागर ब्रह्मांड समाज ने यह प्रथा 20 सालो से चली आ रही है

हाइलाइट्स

  • खंडवा में नागर ब्राह्मण समाज की अनोखी होली परंपरा.
  • होलिका दहन के दिन दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि.
  • समाज की एकजुटता और संवेदनशीलता की मिसाल.

खंडवा. मध्य प्रदेश के खंडवा में नागर ब्राह्मण समाज ने बीस साल पहले एक अनोखी पहल की शुरुआत की थी, जो आज भी पूरी श्रद्धा और परंपरा के साथ निभाई जा रही है. समाज ने होली के त्योहार को मनाने की परंपरा में बदलाव किया, जिससे यह त्योहार सामाजिक और भावनात्मक रूप से और भी विशेष बन गया.

पहले, जब समाज के किसी व्यक्ति का देहांत हो जाता था, तो होली और दशहरे के मौके पर रिश्तेदारों और समाज के लोगों को घर-घर जाकर संवेदना प्रकट करनी पड़ती थी. त्योहारों की व्यस्तता के चलते कई लोग समय पर नहीं पहुंच पाते थे. इस समस्या को देखते हुए नागर ब्राह्मण समाज ने सामूहिक रूप से एक नई परंपरा शुरू की. इसमें सालभर में जिन लोगों का निधन होता है, उनकी स्मृति में समाज के सभी लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

होलिका दहन के दिन श्रद्धांजलि सभा
समाज के वरिष्ठ सदस्य लव जोशी ने बताया कि होली के दिन, जब होलिका दहन होता है, तब शाम के समय समाज के सभी लोग स्थानीय धर्मशाला में एकत्रित होते हैं. वहां वर्षभर में दिवंगत हुए समाज के सदस्यों की तस्वीरें रखी जाती हैं और सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. यही परंपरा दशहरे के दिन भी निभाई जाती है, जब दिवंगत आत्माओं की याद में उनकी तस्वीरों को धर्मशाला में रखा जाता है और सामूहिक रूप से उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं.

समाज की एकजुटता को मिली मजबूती
इस परंपरा से उन परिवारों को सामूहिक समर्थन मिलता है, जिन्होंने अपनों को खोया है. हर किसी को दिवंगत आत्माओं के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करने का अवसर मिलता है, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से उनके घर न जा पाए हों. इसके बावजूद, करीबी रिश्तेदार शोक के समय व्यक्तिगत रूप से भी परिवार के पास जाते हैं.

संस्कृति में छोटे बदलाव, बड़ी सीख
नागर ब्राह्मण समाज की यह पहल सामाजिक एकता और संवेदनशीलता की मिसाल बन गई है. बीस वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है और यह साबित करती है कि संस्कृति और रीति-रिवाजों में छोटे बदलाव करके हम उन्हें और भी सार्थक बना सकते हैं.

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