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बिजली बिल से हो गए परेशान, अपनाया Trending तरीका! अब यह काॅलेज बचा रहा लाखों

Agency:News18 Madhya Pradesh

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खंडवा के नंदकुमार सिंह चौहान मेडिकल कॉलेज में लाखों रुपए का बिजली बिल आता है लेकिन इस बिजली बिल को कम करने के लिए कॉलेज एक तकनीक अपनी जिस साल के यह कॉलेज 15 लाख रुपए तक बचा रहा है इस पहल की हर कोई तारीफ कर रहा …और पढ़ें

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खंडवा

खंडवा के मेडिकल कॉलेज में सोलर से बिजली बनाते हुए 

हाइलाइट्स

  • खंडवा मेडिकल कॉलेज ने सोलर पैनल से 15 लाख रुपये बचाए.
  • कॉलेज की छतों पर सोलर पैनल और विंड टरबाइन लगाए गए.
  • ग्रीन एनर्जी से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई.

खंडवा. खंडवा के नंदकुमार सिंह चौहान मेडिकल कॉलेज में लाखों रुपये का बिजली बिल आता है, लेकिन इस बिजली बिल को कम करने के लिए कॉलेज ने एक तकनीक अपनाई, जिससे सालाना करीब 15 लाख रुपये की बचत हो रही है. इस पहल की हर कोई तारीफ कर रहा है. जानिए, कैसे कॉलेज ने यह कमाल किया.

क्या कोई कॉलेज खुद बिजली बना सकता है और उससे लाखों रुपये बचा सकता है? जी हां, यह सच है! इस कॉलेज ने अपनी खुद की बिजली बनाकर करीब 15 लाख रुपये की बचत की है.

खुद ही बना ली बिजली
कॉलेज ने अपनी छतों पर सोलर पैनल लगाए और कुछ जगहों पर विंड टरबाइन भी इंस्टॉल किए. इसके जरिए कॉलेज ने अपनी जरूरत की बिजली खुद ही बना ली. पहले हर महीने बिजली का खर्च हजारों में आता था, लेकिन जब कॉलेज ने अपनी खुद की बिजली बनानी शुरू की, तो यह खर्च न के बराबर रह गया. इससे पूरे साल में करीब 15 लाख रुपये की बचत हुई.

डीन ने दी जानकारी
कॉलेज के डीन संजय दादू ने बताया कि यह शासन की एक बहुत अच्छी योजना है, जिसके तहत शासकीय भवनों की छतों पर सोलर सिस्टम लगाया गया है. इस पर शासन की तरफ से कोई व्यय नहीं हुआ है. टेंडर प्रक्रिया के तहत कंपनी ने पार्टिसिपेट किया और पूरा खर्चा वे ही वहन कर रहे हैं. यह 25 साल की योजना है, जिसमें मेंटेनेंस का कार्य भी कंपनियों द्वारा किया जाएगा. इस योजना से बगैर खर्च किए हम प्रतिवर्ष 1 से 1.5 लाख रुपये की बचत कर पा रहे हैं, जिससे सालाना 15 से 18 लाख रुपये की बचत हो रही है.

कॉलेज की छत पर 240 किलोवॉट का सिस्टम लगा हुआ है, जिसमें से 180 किलोवॉट एकेडमिक बिल्डिंग पर और 80 किलोवॉट दूसरी बिल्डिंग पर लगा है. यह एक ऑन-ग्रिड सिस्टम है और ऑन-ग्रिड सिस्टम में बैटरियों को मेंटेन करने की आवश्यकता नहीं होती.

पर्यावरण के लिहाज से भी जरूरी
इससे सिर्फ बचत ही नहीं हुई, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ. ग्रीन एनर्जी से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई और बिजली उत्पादन का एक सस्टेनेबल मॉडल तैयार हुआ. यदि एक कॉलेज ऐसा कर सकता है, तो दूसरे कॉलेजों में भी यह मॉडल अपनाया जा सकता है. अगर देश के हर कॉलेज और यूनिवर्सिटी इस मॉडल को अपनाए, तो करोड़ों रुपये की बिजली बचाई जा सकती है और क्लाइमेट चेंज से लड़ने में भी मदद मिल सकती है.

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