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पाली के इस परिवार की चंग की थाप दूसरे राज्यो में भी गूंज

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वाद्य यंत्र की दुकान चलाने वाले राजन चौहान ने कहा कि होली पर बात करे तो पाली के अंदर 400 के करीब चंग बिक जाते है. इसके साथ ही सीजन के अंदर करीब 350 चंग रिपेयर होने के लिए आते है.

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पीढ़ियों से चंग का काम करता पाली का परिवार

फाल्गुन का महीना शुरू हो जाए और चंग की थाप न सुनाई तो ऐसा कैसे हो सकता है. चंग की थाप पर पूरे राजस्थान भर में गीतों का जोश परवान पर है. होली पर बात करे तो पाली के अंदर 400 के करीब चंग बिक जाते है. इसके साथ ही सीजन के अंदर करीब 350 चंग रिपेयर होने के लिए आते है जिनका काम आज भी एक परिवार है जो पिछले चार पीढियों से कर रहा है.

गांधी मूर्ति के पास वाद्य यंत्र की दुकान चलाने वाले राजन चौहान को होली का समय ऐसा होता है कि एक महीने तक उनको फुर्सत नही होती. शहर में यह पीढी 70 सालों से इसका काम कर रही है. सबसे पहले किशनलाल चौहान ने चंग व वाद्य यंत्र बनाने का काम शुरू किया. जिसको अब उनका बेटा राजन दुकान संभाल रहे है. राजन को भी 30 साल हो गए है. राजन बताते है कि उन्होने अपने पिता किशनलाल चौहान से काम सीखा. बचपन में जैसे ही स्कूल से फ्री होते तो अपने इस पुश्तैनी काम को संभालने के लिए दुकान पर पहुंच जाते.

चार पीढियों से एक परिवार कर रह यह काम
राजन की माने तो इनके पाली शहर में 4,फालना,जालोर और आहोर में भी एक-एक ब्रांच है. चंग का सबसे ज्यादा बोलबोला होने की बात करे तो वह फालना,नाडोल,देसूरी और सोजत के पास ज्यादा होता है. सीरवी समाज के लोगो में इसको लेकर ज्यादा क्रेज देखने को मिलता है. हमारा परिवार चार पीढियों से यह काम कर रहा है.

गांवो और शहरो में होली की गूंज
गांवों के साथ शहर में भी होली के गीत लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगे है. अंतर सिर्फ इतना है कि गांवों में फाग के गीत ग्रामीण गा रहे हैं. शहर के मोहल्लों में भी इनकी गूंज सुनाई दे रही है. शहर के सूरजपोल गांवशाही होली के आगे शाम ढलते ही लोग चंग की थाप पर फाल्गुन के गीत गाते हुए नजर आ रहे हैं.

इस तरह चंग होते है तैयार
होली के त्योहार के बीच चंग की थाप की भी डिमांड तेजी से बढ़ी है. चंग को बनाने के लिए भी खास तैयारी की जाती है. चंग बनाने के लिए आम की लकड़ी से चंग का घेरा बनाया जाता है. जिसकी साइज 24 इंच से 30 इंच तक होती है. इसके बाद बकरा, भेड़ की खाल के साथ ही फाइबर से भी चंग बनाई जाती है. इनसे निकलने वाली धुन अच्छी और तेज होती है, जिसकी विशेष डिमांड होती है.

होली पर दूसरे राज्यो में भी बढ जाती है चंग की डिमांड
खास कर होली के त्योहार पर चंग की डिमांड रहती है. राजस्थानी लोग जो महाराष्ट्र, गुजरात या अन्य प्रदेशों में रहते है, वे ऑर्डर देकर चंग बनवाते है. इसकी कीमत एक से पांच हजार रुपए तक होती है. राजन चौहान बताते है कि वर्तमान में लोगों की डिमांड अनुसार चंग पर आकर्षक रंगों से डिजाइन भी बनाते है, जिससे उसका लुक अच्छा दिखाई देता है. साथ ही घुंघरू भी काफी बिकते है. गेरिए पैरों में बांधकर गैर नृत्य करते है. इन घुंघरुओं की कीमत भी 2 से 3 हजार के बीच होती है.

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