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'जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ'… इस मंदिर में प्रसाद के लिए लगती है होड़!

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Rewa News: रीवा के श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर में होली पर आटिका महाप्रसाद का विशेष महत्व है. हजारों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करने पहुंचते हैं. 57 वर्षों से कढ़ी-भात का भंडारा आयोजित हो रहा है. मंदिर का निर्माण रीव…और पढ़ें

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होली

होली के दिन रीवा के 223 साल पुराने जगन्नाथ मंदिर में होगा आटिका महाप्रसाद.

हाइलाइट्स

  • होली पर रीवा के जगन्नाथ मंदिर में आटिका महाप्रसाद का वितरण होगा.
  • आटिका महाप्रसाद लेने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं.
  • मंदिर का निर्माण रीवा के महाराजा रघुराज सिंह ने शुरू किया था.

रीवा. विंध्य क्षेत्र में होली का त्योहार विशेष महत्व रखता है. जहां एक ओर रंग-गुलाल की धूम रहती है, वहीं रीवा स्थित श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर में आटिका महाप्रसाद लेने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में उमड़ते हैं. इस वर्ष भी होली के दिन आटिका महाप्रसाद की तैयारियां जोरों पर हैं. इसके लिए श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के साथ-साथ प्रशासन ने भी कमर कस ली है.

“जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ”, यह कहावत होली के दिन विंध्य क्षेत्र में पूरी तरह चरितार्थ होती है. आटिका प्रसाद का अत्यंत धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. श्री जगन्नाथ मंदिर में आटिका पर्व के दौरान आटिका प्रसाद चढ़ाने और कढ़ी-भात ग्रहण करने के लिए न केवल रीवा बल्कि सतना, सीधी, सिंगरौली और पन्ना जैसे जिलों से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

पौराणिक मान्यताओं का महत्व
जानकारों के अनुसार, पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जगन्नाथ स्वामी के दर्शन और उनके महाप्रसाद के सेवन से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है. सदियों से उनके भात को लेकर जाति-पंथ का भेदभाव समाप्त होता आया है. प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करने से समाज में एकता, समरसता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा मिलता है.

57 वर्षों से हो रहा भंडारे का आयोजन
बिछिया स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में बीते 57 वर्षों से आटिका महाप्रसाद भंडारे का आयोजन किया जा रहा है. इसमें श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में कढ़ी-चावल का वितरण किया जाता है. यह मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है.

रीवा राजघराने से जुड़ा मंदिर का इतिहास
श्री जगन्नाथ मंदिर की पूजा-अर्चना की परंपरा रीवा राजघराने द्वारा शुरू की गई थी. मंदिर का निर्माण कार्य रीवा के महाराजा रघुराज सिंह ने शुरू किया था, जिसे बाद में तत्कालीन महाराजा व्यंकट सिंह ने पूरा करवाया. मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर 223 वर्षों पुराना है और धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है.

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‘जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ’… इस मंदिर में प्रसाद के लिए लगती है होड़!

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