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क्या कहता है विज्ञान: क्या 7 साल में पूरा का पूरा बदल जाता है हमारा शरीर?

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साइटिस्ट्स कहते हैं कि हमारे पूरे शरीर की सेल्स लगातार बदलती रहती हैं. हमारा पूरा का पूरा शरीर ही 7 साल में नया हो जाता है. कहा जाता है कि ऐसे में शरीर का कोई भी रोग इससे ज्यादा समय तक बना नहीं रह सकता है. पर व…और पढ़ें

क्या कहता है विज्ञान: क्या 7 साल में पूरा का पूरा बदल जाता है हमारा शरीर?

वैज्ञानिकों ने पाया है कि औसतन हमारे शरीर की लगभग सारी कोशिकाएं 7 साल में बदल जाती हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

हाइलाइट्स

  • शरीर की सभी कोशिकाएं 7 साल में नहीं बदलतीं
  • कुछ कोशिकाएं कभी नहीं बदलतीं, जैसे आंखों के लेंस के सेल्स
  • इसका उपचार की प्रक्रिया से कोई लेना देना नहीं है

ऐसा तो आपने भी जरूर सुना होगा, हमारा पूरा शरीर 7 साल में बिलुकल नया हो जाता है. तब तक शरीर की हर कोशिका यानी सेल बदल जाती है. इस दलील के आधार पर कई लोग यह तक कहते हैं कि इंसान अगर चाहे तो खुद की हर बीमारी की ठीक कर सकता है और 7 साल में उसकी शरीर का हर तरह का जख्म पूरी तरह से ठीक हो सकता है. लेकिन ऐसा होता नहीं है. तो ये 7 साल में शरीर बदलने के सच आखिर क्या है. क्या इससे मेडिकल साइंस को फायदा मिलता है? क्या हम वाकई अपने हर लंबे रोग को ठीक कर सकते हैं? आइए जानते हैं कि इस पर क्या कहता है विज्ञान?

एक अहम सवाल
साइंस का कहना है कि हमारा शरीर नियमित तौर से करीब  370 खरब मानव कोशिकाएं बदलता रहता है. ऐसे में यह लगना स्वाभाविक कि अगर शरीर की कोशिका बदलती है तो वह पहले से बेहतर हो कर भी बदल सकती है और इस तरह से तो हमारे कई रोगों का उपचार भी इसी समय में हो सकता होगा.

कोशिकाओं का बदलना एक नियमित प्रक्रिया
इससे पहले कि हम इस सवाल के जवाब में जाएं कि कोशिकाओं का बदलना हमारे सभी रोगों के उपचार में सहायक हो सकता है या नहीं, हमें पहले कोशिकाओं के बदलाव की प्रक्रिया को समझना होगा. सेल्स के बदलने की प्रक्रिया ना केवल लगातार और नियमित है बल्कि अलग अलग भी है. इसे सेल रीजनरेशन कहते हैं. सेल्स बनती हैं परिपक्व होती है. फिर खराब होकर या धीरे धीरे कमजोर हो कर मर जाती है और  उनकी जगह नई कोशिकाएं ले लेती हैं.

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हमारे शरीर की सेल्स के बनने बंटने और खत्म होने की प्रक्रिया अलग ही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

रिजनरेशन की प्रक्रिया!
दिलचस्प बात ये है कि कई जीवों में कोशिका बदलने की प्रक्रिया शरीर के हिस्से को फिर से बनाने की प्रक्रिया की तरह है. इसलिए  जब उनका वह खासअंग खराब होता है, तब ना केवल  कोशिकाएं, बल्कि ऊतक भी एक साथ बदलते हैं और नतीजे में पूरा का पूरा अंग ही एक साथ बदल जाता है.

इंसानों के साथ नहीं होता है ऐसा
लेकिन इंसान के मामले में ऐसा नहीं होता है. इंसान का कोई भी अंग एक साथ पूरा का पूरा नहीं बदलता है. यहां तक कि टिशू या ऊतक भी एक बार में पूरे नहीं बदलते हैं. और यही कारण है कि इंसानों में कभी भी ऑर्गन रीजनरेशन यानी पूरा का पूरा अंग फिर से विकसित होने की प्रक्रिया देखने को नहीं मिलती है.

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आंखों के लेंस की कोशिकाएं कभी खत्म नहीं होती हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

क्या हर सेल एक रफ्तार से बदलती है
मानव शरीर की बदलने वाली 370 खरब कोशिकाओं में से करीब 330 अरब कोशिकाएं रोज ही बदल जाती है और यह शरीर का केवल एक फीसदी हिस्सा ही है. वहीं कुछ कोशिकाएं हर हफ्ते बदल जाती हैं. इनमें पेट की कई कोशिकाएं शामिल हैं. त्वचा की कोशकाओं को पूरी तरह बदलने में कुछ हफ्तों का समय लगता है. जबकि 50 करोड़ त्वचा कोशिकाएं रोज बदल जाती हैं.

कौन सी सेल्स बदलने में लगाती हैं ज्यादा वक्त
वहीं कुछ कोशिकाएं बदलने में कुछ ज्यादा ही समय लगा देती हैं. इसकी सबसे अच्छी मिसाल हड्डियों की कोशिकाएं होती हैं. वे बदलने में 10 से 15 साल तक का वक्त लगा देती हैं.  इस तरह से वैज्ञानिक पाते हैं लगभग पूरा शरीर बदलने में औसतन 7 से 10 साल का वक्त लग जाता है. यह शरीर की कोशिकाओं की औसत आयु है.

यह भी पढ़ें: जब कुत्ते बने पूरे देश के हीरो, बर्फीले तूफान में दवा पहुंचा कर बचाई हजारों की जान

कुछ कोशिकाएं नहीं बदलती कभी
आपको जानकर हैरानी होगी की शरीर की कुछ चुनिंदा कोशिकाएं ऐसी भी होती हैं, जो कभी नहीं बदलती. इंसान की आंखों के लेंस की कोशिकाएं, दिमाग के सेरेब्रल कॉर्टेक्स की तंत्रिकाएं, शरीर के खत्म होने के साथ ही खत्म होती हैं और कभी नहीं बदलती हैं.

ऐसे में समस्या कोशिका बदलने की नहीं बल्कि वो सारी प्रक्रियाएं हैं जो शरीर से जुड़ी हैं. आमतौर पर शरीर की कोशिकाएं खुद को फाड़ कर उनकी नकल बनाती हैं. बीमार या घाव वाली कोशिकाओं में उपचार की प्रक्रिया अलग होती है जो कि कोशिका के पैदा होने और मरने से पहले दूसरी बनने की प्रक्राया से काफी अलग होती है. ये प्रक्रियाएं उम्र ढलने के  साथ बदलती भी हैं. ऐसे में यह उम्मीद करना की 7 साल में शरीर बदलने का फायदा उपचार में होगा सही नहीं है.

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