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कौन हैं वो भारतीय,जो निकालते हैं सांप का जहर,दुनिया को देते हैं स्नेक वेनम दवा

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भारत की एक जनजाति नंगे हाथों से सांप को पकड़कर उसका जहर निकालने में माहिर है. इसी जहर से वैज्ञानिक सांप काटने की दवा बनाकर पूरी दुनिया में पहुंचाते हैं. कौन सी है ये जनजाति.

कौन हैं वो भारतीय,जो निकालते हैं सांप का जहर,दुनिया को देते हैं स्नेक वेनम दवा

हाइलाइट्स

  • इरुला जनजाति नंगे हाथों से सांप का जहर निकालने में माहिर है.
  • सांप का जहर एंटी-वेनम इंजेक्शन बनाने में उपयोग होता है
  • इरुला जनजाति दक्षिण भारत में पाई जाती है

जब सांप आसपास से गुजरता है तो होश फाख्ता हो जाते हैं. बहुत से लोग इतना घबरा जाते हैं, पूछिए मत. भले सांप जहरीले हों या नहीं लेकिन डर के लिए पर्याप्त होता है. वैसे 70 फीसदी सांप जहरीले नहीं होते लेकिन जिसमें जहर होता है वो वाकई बहुत खतरनाक होते हैं. अगर काट लें तो उनका जहर तेजी से शरीर में फैलता है और मृत्यु सामने नजर आने लगती है. क्‍या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी ट्राइब्स भी है, जो वाकई जहरीले सांपों से खेलती है. जहरीले सांपों को खिलौनों की तरह नंगे हाथों से उठाते हैं. ये काम करती है भारत में पाई जाने वाली इरुला जनजाति. हालांकि वो सांप का जहर इकट्ठा करते हैं. जिसकी कीमत करोड़ों में होती है.

ये जनजाति दक्षिण भारत में पाई जाती है. इस जनजाति के लोग सदियों से सांपों का जहर इकट्ठा करने का काम कर रहे हैं. इरुला जनजाति के लोग सांप का जहर निकालने के लिए उनकी गर्दन को जोर से दबाते हैं. फिर उनका मुंह खुलने पर उनके दांत एक जार में अटका देते हैं. गर्दन दबाने से गुस्‍से में आया सांप जहर उगलना शुरू कर देता है. इसी जगह को इरुला जनजाति के लोग इकट्ठा कर लेते हैं. अब सवाल ये उठता है कि वे जुटाए हुए सांपों के इस जहर का करते क्‍या हैं?

इससे बनता है एंटी-वेनम इंजेक्‍शन
वैज्ञानिक इरुला जनजाति के जुआए सांपों के जहर को लेकर उससे सांप के काटने पर लगाया जाने वाला एंटी-वेनम इंजेक्‍शन बनाते हैं. इरुला जनजाति दक्षिणी भारत के केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्‍यों में पाई जाती है. इस समुदाय की आबादी करीब 3 लाख है. समुदाय के 90 फीसदी से ज्‍यादा लोगों को सांपों का पता लगाने और पकड़ने में महारत हास‍िल होती है. कई पीढियों से समुदाय के लोग यही काम कर रहे हैं. समुदाय के बच्‍चे, बूढ़े और जवान ही नहीं, मह‍िलाएं भी सांपों को पकड़कर उनका जहर इकट्ठा करने में माहिर होती हैं.

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इरुला जनजाति के लोग सांप को गर्दन से पकड़कर उसके दांत जार में अटका कर जहर निकाल लेते हैं.

भारत में किन सांपों का जहर निकालने की मिली है छूट?
भारत में सांपों को जहर निकालने के लिए‍ पकड़ने की सीमित मंजूरी है. नियम के मुताबिक, जहर निकलने के लिए सिर्फ चार प्रजाति के सांपों को ही पकड़ा जा सकता है. इनमें किंग कोबरा, करैत, रसेल वाइपर और इंड‍ियन सॉ स्‍क्रेल्‍ड वाइपर शामिल हैं. बता दें कि इन चारों ही प्रजाति का जहर इतना खतरनाक होता है कि इसकी एक बूंद भी किसी को मौत की नींद सुला सकती है. वहीं, इरुला जनजाति के लोग इनका जहर ऐसे निकाल लेते हैं, जैसे हम हर सुबह ट्यूब से टूथपेस्‍ट निकालते हैं. समुदाय के लोगों जैसे ही जहरीले सांप दिखता है, वे बिना देर किए उसे दबोच लेते हैं और जहर निकाल लेते हैं.

सांपों का जहर कैसे निकालते हैं इरुला जनजाति के लोग
समुदाय के लोग सीधे सांप को गले से पकड़कर जहर उलगवा लेते हैं. दरअसल, वे सांप को सिर से पकड़े हैं और एक जार के मुहाने पर उसके दांत लगा देते हैं. गर्दन पर लगातार दबव पड़ने के कारण सांप आक्रामक हो जाता है और जार पर तेजी से दांत गड़ाने लगता है. इसके उसके नुकीले दांतों से जहर टपककर जार में इकट्ठा हो जाता है. समुदाय के लोगों ने इरुला स्‍नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल को-ऑपरेटिव सोसायटी भी बनाई हुई है. ये सांप का जहर इकट्ठा करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी सोसायटी में एक है. सोसायटी की स्‍थापना 1978 में की गई थी और आज इसके सैकड़ों सदस्य हैं.

आजादी से पहले अंग्रेजों को सांप बेचते थे समुदाय के लोग
समुदाय के लोग जहर न‍िकालकर फार्मा कंपनियों को महंगी कीमत पर बेच देते हैं. यह काम सरकार की मंजूरी के साथ किया जाता है ताकि जहर से एंटी वेनम इंजेक्‍शन बनाया जा सके. इतिहास में इरुला जनजाति शिकारी समुदाय के तौर पर दर्ज है. आजादी से पहले यह समुदाय अंग्रेजों को सांप बेचता था. दरअसल, अंग्रेजों को सांप की खाल बहुत पसंद आती थी. फिर 1972 में वन्‍य जीव संरक्षण कानून आने के बाद सांप के श‍िकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसकी वजह से इनकी कमाई भी बंद हो गई. फिर वैज्ञानिक रोमुलस व्हिटेकर ने 1978 में इरुला जनजाति के लोगों के साथ दोस्ती की और सम‍ित‍ि की स्‍थापना की.

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समुदाय के लोग आजादी से पहले सांप पकड़कर अंग्रेजों को बेच देते थे.

सांप का जहर बेचकर कर लेते हैं 25 करोड़ तक की कमाई
व्हिटेकर ने ही जनजात‍ि के लोगों को सांपों को पकड़ने की जिम्मेदारी दी. इसके बाद ये समुदाय सांप के शिकारियों से जीवनरक्षक बन गया. सम‍िति के लोगों को जहर निकालने के लिए सरकारी लाइसेंस दिया जाता है. हर साल इन्‍हें 13,000 सांप पकड़ने की छूट रहती है. इससे उन्‍हें 25 करोड़ रुपये तक की तगड़ी कमाई हो जाती है. जिन इलाकों में ये समुदाय रहता है, वहां बहुत गर्मी होती है. लिहाजा सांपों को चौड़े किनारों वाले मिट्टी के बर्तनों में रखा जाता है. बर्तन को सूती कपड़े से ढक दिया जाता है. फिर एक धागे से कपड़े को बांध दिया जाता है. सम‍ित‍ि के लोग एक सांप को 21 दिन तक ही अपने पास रख सकते हैं. इस दौरान वे 4 बार जहर निकाल लेते हैं.

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