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किसान भाई पुआल जलाएं नहीं…ऐसे करें इस्तेमाल, हर साल होगा तगड़ा मुनाफा

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Low cost Farming Techniques​: किसान हीरालाल महतो ने लोकल 18 से खास बातचीत में बताया कि वह वर्ष 2016 से खेती कर रहे हैं और इससे पहले वे मजदूरी करते थे, लेकिन आसपास के किसानों को देखकर खेती करने की प्रेरणा मिली…और पढ़ें

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किसान

किसान कि तस्वीर 

हाइलाइट्स

  • किसान हीरालाल महतो ने पुआल का मल्चिंग कर बेहतर उपज हासिल की.
  • प्लास्टिक की जगह पुआल का उपयोग कर 6,000 रुपये की बचत की.
  • पुआल के उपयोग से मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है.

कैलाश कुमार , बोकारो: खेती में कम लागत और अधिक उत्पादन हर किसान का सपना होता है ऐसे में बोकारो जिले के चन्द्रपुरा प्रखंड के तारानारी गांव के किसान हीरालाल महतो ने अपने देशी तरीके से इसे हकीकत बना दिया है. बता दें कि जहां दूसरे किसान ड्रिप इरीगेशन के साथ  आधुनिक मल्चिंग के लिए महंगे प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं, वहीं बोकारो के किसान हीरालाल महतो ने कम लागत में पुआल का मल्चिंग तैयार कर बेहतर उपज हासिल किया है.

किसान हीरालाल महतो ने लोकल 18 से खास बातचीत में बताया कि वह  वर्ष 2016 से खेती कर रहे हैं और  इससे पहले वे मजदूरी करते थे, लेकिन आसपास के किसानों को देखकर खेती करने की प्रेरणा मिली और उन्होंने शुरुआत छोटे स्तर पर की, लेकिन अब अपनी मेहनत से वह पूरे 4 एकड़ में खेती कर रहे हैं.

हीरालाल ने बताया कि साल 2023 में उन्होंने गौर किया कि गर्मियों में प्लास्टिक से ढकी मिट्टी ज्यादा गरम हो जाती है, जिससे नमी जल्दी खत्म हो जाती है इसके अलावा, प्लास्टिक के उपयोग से फसल में फंगस की समस्या भी बढ़ जाती थी. ऐसे इससे बचने के लिए उन्होंने प्लास्टिक की जगह पुआल का उपयोग करने का निर्णय लिया और पुआल के मल्चिंग के अपयोग के बाद उन्हें  बेहतर उत्पादन मिला है.

उन्होंने आगे बताया कि प्लास्टिक मल्चिंग करने पर एक बंडल (400 मीटर) की कीमत 2200-2400 रुपये तक होती है. लेकिन 2 ट्रैक्टर पुआल के उपयोग से वे सालाना लगभग 6,000 रुपये की बचत कर रहे हैं.

इसके अलावा, पहले खीरा और करेला की फसल की पहली तुड़ाई में 4-5 क्विंटल उत्पादन होता था, लेकिन अब यह बढ़कर 7 क्विंटल तक पहुंच गया है साथ ही समय के साथ पुआल प्राकृतिक रूप से मिट्टी में मिल जाता है, जिससे खेतों को अतिरिक्त पोषण मिलता है और मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है.

वहीं आखिर में किसान हीरालाल ने बताया कि अगर किसान पुआल जलाने के बजाय इसे खेती में इस्तेमाल करें तो इससे पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा और पैसे की भी बचत होगी.

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